मुक्तक/दोहा

मुक्तक

हे यदुनंदन अब तो आओ, जग की नैया पार लगाओ
विवश हुआ है जीवन जीना, एक बार तो चक्र चलाओ।
रुपया पैसा जग जीवन में, हे प्रभु बहुत महान हुआ
आके देखों अपनी द्वारिका, गोकुल मथुरा पार लगाओ॥

— महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

3 thoughts on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा मुक्तक !

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा मुक्तक !

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय श्री विजय कुमार सिंघल सर, आभार

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