गीत/नवगीत

गीत : मेरा देश सो रहा है

कोई फूलों की माला में
काँटे पिरो रहा है
कोई अपने हाथों अपनी
कश्ती डुबो रहा है
कुछ भी ना समझ आए
कि ये क्या हो रहा है
किसको भी नहीं मालूम
ये कैसे हो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है

कोई वोट माँगता है
दे-दे के लंबे भाषण
हड़ताल पे कोई उतरा
उसे चाहिए आरक्षण
अमीर सोचता है
रखूँ कहाँ इतना धन
गरीब की हैं चिंता
कैसे खरीदूँ राशन
हर कोई अपने सर पर
इक बोझ ढो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है

कहीं लूट सी मची है
कहीं हो रहे हैं दंगे
सब कुर्सियों पे काबिज़
यहां हो गए लफंगे
हर काम में रूकावट
हर काम में अड़ंगे
किसीको शर्म नहीं है
नेता सभी हैं नंगे
ये वो भी बेच देंगे
बच बाकी जो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है

नारे लगाए कोई
कहीं झंडे जल रहे हैं
आस्तीन में हमारी
कुछ साँप पल रहे हैं
भारत के टुकड़े करने
को जो मचल रहे हैं
घर-घर से कहते हैं वो
अफज़ल निकल रहे हैं
आहत है देशभक्ति
स्वाभिमान रो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]

2 thoughts on “गीत : मेरा देश सो रहा है

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन
    उम्दा रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा गीत !

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