गीत : मेरा देश सो रहा है
कोई फूलों की माला में
काँटे पिरो रहा है
कोई अपने हाथों अपनी
कश्ती डुबो रहा है
कुछ भी ना समझ आए
कि ये क्या हो रहा है
किसको भी नहीं मालूम
ये कैसे हो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है
कोई वोट माँगता है
दे-दे के लंबे भाषण
हड़ताल पे कोई उतरा
उसे चाहिए आरक्षण
अमीर सोचता है
रखूँ कहाँ इतना धन
गरीब की हैं चिंता
कैसे खरीदूँ राशन
हर कोई अपने सर पर
इक बोझ ढो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है
कहीं लूट सी मची है
कहीं हो रहे हैं दंगे
सब कुर्सियों पे काबिज़
यहां हो गए लफंगे
हर काम में रूकावट
हर काम में अड़ंगे
किसीको शर्म नहीं है
नेता सभी हैं नंगे
ये वो भी बेच देंगे
बच बाकी जो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है
नारे लगाए कोई
कहीं झंडे जल रहे हैं
आस्तीन में हमारी
कुछ साँप पल रहे हैं
भारत के टुकड़े करने
को जो मचल रहे हैं
घर-घर से कहते हैं वो
अफज़ल निकल रहे हैं
आहत है देशभक्ति
स्वाभिमान रो रहा है
हाय री बदनसीबी
मेरा देश सो रहा है
— भरत मल्होत्रा
सार्थक लेखन
उम्दा रचना
बहुत अच्छा गीत !