कविता

दहेज

अरी बहन! जाते-जाते सुनती जा ज़रा

मेरी गपशप में है आज, खुशी का रंग भरा

मुहल्ले वालियाँ, बड़े शान से अकड़ के चलती हैं

पर मुझे देख आज, अपना हाथ मलती हैं

उन्होंने अपना-अपना लड़का बेचा, तो क्या ख़ाक में बेचा

देख तीर मारा मैंने और एक करोड़ सवा लाख में बेचा

अरी यहाँ बेचने का हुनर आना चाहिए

और खरीदारों को कौशल से मनाना चाहिए

देख मैंने दिया कैसा-कैसा भरोसा

तब कहीं जा कर अपना लड़का परोसा

अरे जब संसार ने इतनी बढ़ियाँ रीति निकाली है

तो मैंने भी बहती गंगा में बाँह तक धो डाली है।

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “दहेज

  • नीतू सिंह

    शुक्रिया

  • विजय कुमार सिंघल

    करारा व्यंग्य !

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