लघुकथा

लघु कथा : सही सोच

चारों अभी भी पक्के दोस्त थे।बचपन से ही सहपाठी रहें हैं ,इससे स्टेटस की भिन्नता के बावजूद मित्रता बरकरार थी।
दीपक सरकार में बहुत बड़े पद पर था जबकि रामलाल अस्पताल में वार्ड ब्वाय ही बन सका था।मनोज और तीरथ बीच में ही थे ,न बड़े न छोटे।मध्यम वर्ग में शामिल थे दोनों।
दीपक की बेटी की शादी थी।मनोज दीपक की हैसियत के हिसाब से कीमती तोहफा लेकर पहुँचा।इसके उलट तीरथ बिल्कुल साधारण तोहफा दे आया।
दूसरे दिन रामलाल की बेटी का भी ब्याह था ।मनोज तो बिलकुल ही कम कीमत का तोहफा लाया परंतु तीरथ ने बहुत ही कीमती तोहफे लाकर रामलाल को लाकर दिए।
“यार रामलाल तो एक वार्ड ब्वाय ही है फिर इतने कीमती सामान!”मनोज ने तीरथ से पूछकर जिज्ञासा शांत करना चाही।
“भरे पेट वालों को भोजन कराने से क्या लाभ। भूखे को खिलाओ तो दुआएँ तो मिलेंगीं।”

जबाब मनोज को झकझोर गया। बात तो सच थी। भविष्य में वह भी ऐसा ही करेगा, वह अब सोच रहा था।

 

*प्रभुदयाल श्रीवास्तव

प्रभुदयाल श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार् 12 शिवम् सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म प्र 480001

4 thoughts on “लघु कथा : सही सोच

  • लीला तिवानी

    प्रिय प्रभुदयाल भाई जी, बहुत बढ़िया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय प्रभुदयाल भाई जी, बहुत बढ़िया.

  • ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

    आदरणीय प्रभुलाल जी आप जितने अच्छे बालगीत लिखते हैं उतनी अच्छी लघुकथा लिखी है. बधाई आप को .
    वैसे – अंतिम पंक्तियों के बिना भी काम चल सकता था.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा !

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