गीतिका/ग़ज़ल

बनकर कासिद आँख में आंसू आये हैं

ग़ज़ल

बनकर तेरी याद की ख़ुश्बू आये हैं
दर्द के कुछ कस्तूरी आहू आये हैं

रात अमावस की औ” यादों की टिमटिम
ज्यों राहत के चंचल जुग्नू आये हैं

भेजा है पैगाम तुम्हारे ख़्वाबों ने
बनकर कासिद आँख में आंसू आये हैं

महका-महका हर क़तरा मेरे तन का
हम जबसे तेरा दामन छू आये हैं

जब भी बादल काले-काले दिखे नदीश
ज़हन में बस तेरे ही गेसू आये हैं

©® लोकेश नदीश