क्या पता ये सांस भी आखिरी हो
क्या पता ये लम्हा आखिरी हो
जो न फिर से आ पाय कभी
क्या पता ये मुलाकात भी आखिरी हो
जो फिर से न मिल पाएं कभी
इक बार समा जाओ मुझमे मैं बनकर
क्या पता ये सांस भी आखिरी हो
ढूंढती रह जाओगी मुझको
बहते पानी और बहती हवाओ में
सूरत तक न देख पाओगे
महसूस करोगे अपनी आहों में
अभी भी समझ लो मेरे जज़्बात
नही रह सकता बिन आँखे किये नम
हो सके तो जाते जाते पोंछ देते मेरे अश्क
अपने मासूम हाथों से
जिन्हें छूने के लिए हर लम्हा तरसता हूँ
क्या पता मेरे इस जीवन का ये हाथ भी आखिरी हो
साथ भी आखिरी हो
और……..जब तक पढ़ो ये शब्द
क्या पता मेरी सांस भी आखिरी हो।