सामाजिक

ए. टी. एम.

ए.टी.एम एक सुविधा जनक लौह मशीन जिस के द्वारा आप जब चाहें अपनी मनवांछित राशि किसी भी समय आसानी से ले सकते हैं बिना कोई रोक टोक या समय सीमा बिना किसी जवाबदारी |

ऐसा सा ही कुछ हाल मानवीय रिश्तों का भी है आज दोस्त ,रिश्तेदार ,सगे हों, करीबी या दूर के सभी का इस्तेमाल ए.टी.एम की भांति ही तो होता है आपकी इच्छा, ज़रुरत और सुविधा अनुसार | बिना ये सोचे या जाने की आप एक लौह मशीन नहीं हाड़ – मांस का जीता जागता व्यक्तित्व हैं जिसके अपने एहसास ,अपने ,दर्द , ख़ुशी ,सुख ,दुःख हैं जिसे भुनाया नहीं जा सकता आपकी सुविधा या ज़रुरत अनुसार |

पर आधुनिकरण के चलते दिल भी तो धडकनों से नहीं निजी स्वार्थ से ही चलता है या यूँ कही अपना काम निकाला और चलते बने | इस की शुरुवात बचपन के खेल खेल में ही हो जाती है ….तू मेरा दोस्त है न….मेरे लिए इतना नहीं कर सकता और दूसरा चाह कर भी भावना वश कुछ कह सुन नहीं पाता और आपकी बात आसानी से मान जाता है | धीरे – धीरे यही बात  दोस्ती से रिश्तों में आने लगती है ….मैं तो छोटा हूँ न , सब का लाडला मेरा तो हक बनता है , आप बड़े हो आपका तो फ़र्ज़ बनता है …..| यहाँ भी भावना प्रधान आप क्या और किस से कहोगे |

फिर नए रिश्ते जुड़ते हैं ,नए बंधन ….वहां भी यही …तुम अब ससुराल में हो ..मायके की नहीं चलेगी ये फरमान बड़े बुजर्गो द्वारा दे दिया जाता है | पति पत्नी से …अब ये घर तुम्हारा है तो ये रिश्ते भी तो तुम्हारे हुए न ….पति अपनी कहेगा ,सास –ससुर अपनी, बड़े जेठ –जेठानी हों तो उनका अपना मापदंड , देवर –देवरानी, नन्द हों तो उनकी अपनी मांग ….इस पुरे भंवर में कोई ये नहीं सोचता की एक व्यक्ति जिस से आप इतनी अपेक्षाएं कर रहे हो अपने भावपूर्ण कायदे नियम थोप रहे हो ..क्या वो सिर्फ एक मूक ,भाव हीन मशीन है या इंसान |

इस तरह जब परिवार जुड़ता और बढ़ता है तब बच्चों की इमोशनल भावनात्मक स्पर्धा | इस तरह चक्र घूमता रहता है और इस्तेमाल होने व् करने का सिलसिला चलता रहता है रिश्तों की कड़ियों में |

यहाँ ये कहना और सोचना भी ज़रूरी है की जो भावनात्मक बंधन आपको सुख और सुकून दें आप सहजता से क़ुबूल कर लेते हैं पर जहाँ सिर्फ निजी स्वार्थ और शोषण हो वो असहनीय और तकलीफ दायक होते हैं | इसलिए ये ज़रूरी हो जाता है की कोई भी रिश्ता चाहे मैत्री को हो , निजी संबंध , पारिवारिक या सामाजिक उसे लेशमात्र स्वार्थ हेतु सिर्फ इस्तेमाल रूपी छला न जाये | तभी हम एक बेहतर रिश्ता , घर और समाज बना पाएंगे | क्योंकि चाहे घर के पारिवारिक रिश्ते हो , दोस्ती का ,दफ्तर के बॉस और कार्यरत टीम ,स्टाफ  , दुकान से लेनदार , ग्राहक  या कोई भी कार्य स्थल , रिश्ता मात्र उपयोग वस्तु न हो अपितु समानता ,उदारता , निश्छल व् प्रेममयी हो

इसलिए ए.टी.एम मशीन ..मशीन तक ही सिमित रहे ,इसे रिश्तों में मत लागू कीजिये मधुरता व् आत्मीयता लायें न की मात्र दिखावट जिसे सिर्फ थोपा या ढोया जाये बल्कि जिया जाये बिना किसी बनावट के |

 — मीनाक्षी सुकुमारन (नॉएडा)

मीनाक्षी सुकुमारन

नाम : श्रीमती मीनाक्षी सुकुमारन जन्मतिथि : 18 सितंबर पता : डी 214 रेल नगर प्लाट न . 1 सेक्टर 50 नॉएडा ( यू.पी) शिक्षा : एम ए ( अंग्रेज़ी) & एम ए (हिन्दी) मेरे बारे में : मुझे कविता लिखना व् पुराने गीत ,ग़ज़ल सुनना बेहद पसंद है | विभिन्न अख़बारों में व् विशेष रूप से राष्टीय सहारा ,sunday मेल में निरंतर लेख, साक्षात्कार आदि समय समय पर प्रकशित होते रहे हैं और आकाशवाणी (युववाणी ) पर भी सक्रिय रूप से अनेक कार्यक्रम प्रस्तुत करते रहे हैं | हाल ही में प्रकाशित काव्य संग्रहों .....”अपने - अपने सपने , “अपना – अपना आसमान “ “अपनी –अपनी धरती “ व् “ निर्झरिका “ में कवितायेँ प्रकाशित | अखण्ड भारत पत्रिका : रानी लक्ष्मीबाई विशेषांक में भी कविता प्रकाशित| कनाडा से प्रकाशित इ मेल पत्रिका में भी कवितायेँ प्रकाशित | हाल ही में भाषा सहोदरी द्वारा "साँझा काव्य संग्रह" में भी कवितायेँ प्रकाशित |

One thought on “ए. टी. एम.

  • विजय कुमार सिंघल

    जानकारीपूर्ण !

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