फूल पौधे हमारे जीवन साथी
अर्धांगिनी साहिबा को फूलों का शौक है. घर में ऐक बेल है, जिसको अक्सर लोग म्नी प्लांट कह देते है लेकिन इस बेल का नाम है scindapsas. हमारे घर के ऐक कोने में इसका एक गमला था, हर सुबह अर्धांगिनी साहिबा इसको पानी देती और इससे बातें भी करती, कभी कभी इसके पत्तों को टिशु पेपर से सॉफ भी करती. यह प्लांट ऐक कौरनर में था, यहाँ कुछ लाइट कम पड़ती थी. ऐक दिन उस के मन में विचार आया कि क्यों ना इस गमले को खिड़की के नज़दीक रख दूं ताकि इसको और लाइट मिले. प्लांट को खिड़की के नज़दीक रख दिया गिया. कोई दो हफ्ते बाद ऐक पतता जो कुछ पीला हो गिया था, टूट कर गमले में गिर गिया. अर्धांगिनी ने वोह पता उठाया और बिन में फैंक दिया, कुछ दिन बाद दो गिर गये, फिर धीरे धीरे और गिरने लगे. अर्धांगिनी को समझ नहीं आ रही थी कि यह क्यों गिर रहे हैं, फिर उसने ऐक और खिड़की यहाँ इससे भी ज़ियादा लाइट पड़ती थी गमले को वहां रख दिया और कुछ ड्राप लीकुड खाद के डाले जो पलांट फ़ूड है, पानी भी रैगूलर दिया लेकिन देखते ही देखते सारा प्लांट सूख गिया और ऐक भी पता ना रहा. पत्नी ने सोचा किः इस को फैंककर इसी गमले में नया प्लांट लगा दिया जाये और उस ने इस गमले को बाहर रख दिया. कुछ हफ्ते ऐसे ही पड़ा रहा. ऐक दिन पता नहीं उसको क्या सूझा उस ने गमले को उसी जगह रख दिया यहाँ पहले कॉर्नर में पड़ा होता था. कुछ दिन ऐसे ही पड़ा रहा. ऐक दिन सुबह जब वोह नीचे आई तो उस का धियान प्लांट पर पड़ा तो देखा कि प्लांट को दो हरी हरी पातियाँ निकल आई थी, वोह तो खुशी से झूम उठी और प्लांट के साथ बातें करने लगी और सौरी बोलने लगी कि उस ने खामख़ाह उसका गमला और जगह रक्ख दिया, जब कि वोह वहां रह कर ही खुश था. अब अर्धांगिनी साहिबा हर सुबह उठकर प्लांट को देखती और उससे बातें करती. धीरे धीरे वेल पत्तों से भर गई और यह वेल अब मेरे सामने ही है और नीचे से ऊपर तक पत्तों से भरी हुई है, देख कर रूह खुश हो जाती है, isn,t it amazing?
नमस्ते आदरणीय श्री गुरमैल सिंह जी। रचना अच्छी लगी। सभी कमेंट्स भी पढ़े। वह भी मनोहर एवं ज्ञानवर्धक हैं। मनी प्लांट के बारे में नया जानने को मिला। सादर धन्यवाद।
भाई साहब, आपका आलेख पढ़कर आनंदित हुआ. पौधों में भी जीवन होता है. वे भी लाड़-प्यार चाहते हैं तो आश्चर्य क्या है.
विजय भाई ,आप सही कह रहे हैं , अक्सर हम लोग पेड़ पौदे तो लगाते हैं लेकिन इस बात को भूल ही जाते हैं कि इन में भी जीवन है ,तभी तो जब कोई पौदा लगाते हैं तो धीरे धीरे बच्चे की तरह बड़ने लगता है ,इस को बड़ा होने के लिए कैसे ज़मीन से खुराक जाती है और यह बड़ा होता जाता है ,सकूल में अक्सर पड़ा करते थे कि पेड़ पौदे रात को सोते हैं और अपनी सांस याने कार्बन्दाइउक्साइद छोड़ते हैं ,इस लिए रात के समय इन के नीचे सोना नहीं चाहिए , इसी बात को धियान में रख कर जब मैं रात को सोने के लिए जाता हूँ तो कभी भी प्लांट को छूता नहीं हूँ ताकि डिस्टर्ब ना हो जाए .
विजय भाई ,आप सही कह रहे हैं , अक्सर हम लोग पेड़ पौदे तो लगाते हैं लेकिन इस बात को भूल ही जाते हैं कि इन में भी जीवन है ,तभी तो जब कोई पौदा लगाते हैं तो धीरे धीरे बच्चे की तरह बड़ने लगता है ,इस को बड़ा होने के लिए कैसे ज़मीन से खुराक जाती है और यह बड़ा होता जाता है ,सकूल में अक्सर पड़ा करते थे कि पेड़ पौदे रात को सोते हैं और अपनी सांस याने कार्बन्दाइउक्साइद छोड़ते हैं ,इस लिए रात के समय इन के नीचे सोना नहीं चाहिए , इसी बात को धियान में रख कर जब मैं रात को सोने के लिए जाता हूँ तो कभी भी प्लांट को छूता नहीं हूँ ताकि डिस्टर्ब ना हो जाए .
प्रिय गुरमैल भाई जी,
”एक चिड़िया के बच्चे चार,
घर से निकले पंख पसार,
पूरब से पश्चिम को आए,
उत्तर से दक्षिण को धाए,
घूम-घाम जब घर को आए,
माता को यों वचन सुनाए,
देख लिया हमने जग सारा,
अपना घर है सबसे प्यारा.”
मनी प्लांट ने भी कुलवंत जी को यही आभास दिया और कुलवंत जी उनकी भाषा समझ भी गईं. एक अच्छी संकल्पना के लिए आभार.
लीला बहन , आप की कविता बहुत सरल और मन को छु लेने वाली है ,आप भी तो फूलों की भाषा समझती ही हैं ,बस अपना घर हर किसी को पियारा होता है ,हैरानी तो इस बात की होती है कि प्लांट को बाहर भी नहीं रखा था ,बस जगह बदल कर खिड़की के नज़दीक ही रख दिया था .
प्रिय गुरमैल भाई जी, कोई भी अपने घर को छोड़ना नहीं चाहता, कुलवंत जी के मनी प्लांट के मुरझाने का भी यही कारण समझ में आता है. पेड़-पौधे भी अपनी पोज़ीशन और प्यार चाहते हैं. एक अच्छी संकल्पना के लिए आभार.
लीला बहन , आप का विचार सही लगता है किओंकि जब हम भी कहीं दूर जाते हैं तो अपने घर वापस आ कर ही सकूं मिलता है .
आश्चर्य की कोई बात नहीं ….. इनडोर प्लांट है …. यानि बाहर की तेज ताप बर्दाश्त नही कर सकने वाला …. नाजुक अधिक लाड़ प्यार मांगने वाला ….. भाभी जी जो उसे दीं वो हँस पड़ा … जो स्वाभाविक था …. आपका लेखन दिल तक पहुंचता है
सादर _/_
बहन जी आप सही कहती हैं ,कुलवंत के लिए भी यह नया तजुर्बा था ,अब तो वोह कभी इस गमले को दो इंच भी दूर करने वाली नहीं है .और सब से बड़ी बात वेल आगे आगे बड रही है और कोई पत्ता गिरा ही नहीं .