ग़ज़ल : कोई अपना रूठा है
इस दिल में कुछ टूटा है
शायद कोई अपना छूटा है ।
सजल हुई हैं आंखे मेरी
इनसे अश्रु झरना फूटा है ।
मैं जिसकी जोगन बनकर निकली
आज उसने ही लूटा है ।
किसे दिखाऊ घाव ह्रदय के
अब लगता ये जग झूठा है ।
खुद को कर दिया जिसको अर्पण
जब वो ही मुझसे रूठा है ।
खुश है वो जीवन मेरा व्यर्थ बनाकर
ये कैसा प्रेम अनूठा है ?
— अनुपमा दीक्षित मयंक
अच्छी ग़ज़ल !