ग़ज़ल
तरानों में मुहब्बत का तराना ले के आया हूँ,
मैं अपने साथ वो गुज़रा ज़माना ले के आया हूँ
सूखे फूल, इक चूड़ी, वो प्यारे से खिलौने कुछ,
मैं गठरी बाँध कर सारा खज़ाना ले के आया हूँ
जहाँ की रेत पर लिखता था मैं हर रोज़ तेरा नाम,
तू मुड़ के देख दरिया का मुहाना ले के आया हूँ
जहाँ हम तुम किया करते थे पहरों प्यार की बातें,
मैं फिर इक बार वो मंजर सुहाना ले के आया हूँ
बिना देखे तुम्हें ना चैन था इक रोज जब हमको,
मैं अपने दिल में वो जज़्बा पुराना ले के आया हूँ
सजा जाऊँगा दामन में तेरे सारी बहारों को,
राह में वापसी को मैं वीराना ले के आया हूँ
— भरत मल्होत्रा
बहुत बढियां