संस्मरण

नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 5

प्रारंभ में मैंअपने ब्लॉग पर मुख्यतः गाँधी और नेहरु के बारे में ही लेख लिखा करता था. लेकिन कभी कभी अन्य तात्कालिक विषयों पर भी लिखता था. ऐसे ही 9 फरवरी 2012 को मैंने वेलेंटाइन डे के बारे में एक लेख लिखा जिसमें इस डे को मनाने को शूपनखा संस्कृति कहा गया था.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%B…

इस लेख की बहुत चर्चा हुई और कई लोगों ने इस पर कमेंट किये. लगभग सभी कमेंट मेरे विचारों के समर्थन में ही थे.

शुरू के दो-तीन माह मैं गाँधी-नेहरु और देश के स्वाधीनता संग्राम के बारे में ही लिखता था. इन पर आने वाले कमेंटों की संख्या धीरे धीरे बढती जा रही थी. अपने लेख “आजादी कैसे आई?” में मैंने इस प्रचलित धारणा का विरोध किया था जिसमें स्वतंत्रता पाने का श्रेय गाँधी-नेहरु और कांग्रेस को दिया जाता है. मैंने बताया था कि स्वतंत्रता का श्रेय मुख्य रूप से द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद बनी
अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों और 1946 में भारत में हुए नौसैनिक विद्रोह को दिया जाना चाहिए. कांग्रेस ने तो केवल सौदेबाजी की थी और देश के टुकड़े करवाकर सत्ता पर कब्ज़ा किया था.
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/…/%E0%A4%8…

मेरे इस लेख पर भी बहुत कमेंट आये, जिनमें से अधिकांश मेरे समर्थन में थे, लेकिन कुछ विरोध में भी थे. विरोध करने वाले मुख्यतः मुस्लिम पाठक होते थे, जिनमें से कई हिन्दू नाम रखकर कमेंट करते थे. एक सज्जन शीराज मेरे हर विचार के विरोध में लिखते थे वह भी रोमन लिपि में लिखी हिंदी में, जिसको पढना बहुत कठिन होता था. ऐसे ही एक सज्जन शहनाज़ खां केवल ‘जग्गी’ नाम से लिखा करते थे.

विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]

3 thoughts on “नभाटा ब्लॉग पर मेरे दो वर्ष – 5

  • Man Mohan Kumar Arya

    Desh, Dharm, Sanskriti aur Sabhyata ki raksha me aapka yogdan sarahniy hai. Aapka adhyyan aur chntan gahan aur gambhir hai. Sadar naman

  • Man Mohan Kumar Arya

    Desh, Dharm, Sanskriti aur Sabhyata ki raksha me aapka yogdan sarahniy hai. Aapka adhyyan aur chntan gahan aur gambhir hai. Sadar naman

  • विजय भाई , आप के दोनों ब्लॉग पड़े .वैलेंटाइन डे है तो पछमी देशों की दें लेकिन मैं हैरान हो जाता हूँ कि भारत में इतना क्रेज़ है कि हम हैरान ही हो जाते हैं .यहाँ तो लोग अपने पिआरों को फूल भेजते हैं और शाम को कुछ कपल्ज़ किसी रेस्तोरांत में खाना खा लेते हैं लेकिन भारत में तो यह ऐसे है जैसे पागल हो गए हों , एक बात और भी है कि अगर देखा जाए तो भारत में सव्द्व्शी अब रह किया गिया है ,सूट नेकटाई लगा कर लोग दफ्तर में जाते हैं ,बात बात पे अंग्रेजी बोलते हैं ,हमारी ऐजुइकेशन सारी अंग्रेजी , बर्थडे पार्टी ,वैडिंग पार्टी ,पीजे बर्गर यहाँ कि राम देव जैसे भी नूडल बेचते हैं .सब अंग्रेजी तड़क फड़क की ओर ही जा रहे हैं और अब तो डांस बार भी हो गए हैं ,( की बनूँ इंडिया दा ,सच्चे पातशाह वाहगुरू जाणे).
    दुसरे ब्लॉग में देश की आजादी के बारे में लिखा , उस दिन भी मैंने लिखा था कि अँगरेज़ तो एक एक दिन का हिसाब रखते हैं और प्रौफिट को ही मदेनाज़र रखते हैं , यह तो हर घड़ी भागने की सोच रहे थे ,दुनीआं की सभी कलोनिआन इसी के कारण आज़ाद हुईं ,जिन यूर्पिन देशों ने इन कलोनिओं को हथिआने की खातर इतना खून बहाया था ,वोह अब इन कलोनिओं को छोड़ कर भागने लगे थे .सो उस समय भी हमारे देश का बटवारा हो जाना बहुत ही दुर्भाग्य पूरण था .

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