आसमां से
आसमां से मेरे जज़्बातों का रिश्ता बहुत पुराना है
पर जाने क्यों मेरी इस बात पे हंसता ये जमाना है
सूरज से गहरी प्रीत अपनी, अंधेरों से निकाला है
गम में डूबे,किरणों ने उबार निभाया दोस्ताना है
चंद्रमा ने कई दफा,ज़ख्मों को प्यार से सहलाया है
शीतलता लेप मन पे, बांटा दर्द का तानाबाना है
तारे भी जगे है, रातों को मेरी उन तन्हाईयों में
गुफ्तगु करते थे, अपने ही जैसा कोई दीवाना है
बादल गरजे बरसे है कई दफा साथ निभाने को
महसूस कर मेरा दर्द,छलका उनका भी पैमाना है
इंद्रधणुष,अपने रंगों को मिलाया करता है जीवन से
कहता है,तेरा किस्सा तो मेरे सा जाना पहचाना है
आसमां से मेरे जज़्बातों का रिश्ता यूं तो पुराना है
पर जाने क्यों मेरी इस बात पे हंसता ये जमाना है
बहुत ख़ूब !
सुंदर अभिव्यक्ति
उम्दा रचना
प्रिय सखी मीनू जी, बहुत सुंदर कविता के लिए आभार. सुबह-सुबह इतनी सच्ची प्रीत जैसी रचनाएं पढ़ने को मिलें तो प्रत्यूषा जैसी डिप्रेशन वाली घटनाएं रुक जाएं. आज हमारा ब्लॉग डिप्रेशन पर ही है-
http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/entry/%E0%A4%B2-%E0%A4%B2-%E0%A4%A6-%E0%A4%B6-%E0%A4%A6-%E0%A4%A8-%E0%A4%AF-%E0%A4%A1-%E0%A4%AA-%E0%A4%B0-%E0%A4%B6%E0%A4%A8