ग़ज़ल
बात कुछ ऐसी हो जो दिल को दुखाती चले
दर्द ए उल्फत की हर रस्म अब निभाती चले ।
वो पन्ने पड़े हैं कोरे मेरा नाम मिट गया है
अब जिंन्दगी भी मेंरा ये अक्स मिटाती चले।
तिनके संजो लिए हैं अन्जाने ही बहार के
हवा ए क़ातिल मेरा आशियां उडाती चले।
तेरे शहर से मिट जाए मेंरा नामोनिशान
मेरे क़दमों के निशान रेत यूँ मिटाती चले।
देख यूँ दिल की तड़प दिल जल गया ‘जानिब’
जो बच गया है बाकी आग ये जलाती चले
“जानिब”