कविता : रूठ जाती हूँ
रुठ जाती हूं तुझसे
मैं तुझी को मनाने के लिए,..
दूर जाती हूं तुझसे
जराऔर पास आने के लिए,..
तुझे क्या लगता है
मुझे जीतना नही आता,..???
मैं हार जाती हूं अकसर
तुझी को जीत जाने के लिए,
…प्रीति सुराना
रुठ जाती हूं तुझसे
मैं तुझी को मनाने के लिए,..
दूर जाती हूं तुझसे
जराऔर पास आने के लिए,..
तुझे क्या लगता है
मुझे जीतना नही आता,..???
मैं हार जाती हूं अकसर
तुझी को जीत जाने के लिए,
…प्रीति सुराना
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वाह वाह किया बात है !