संस्मरण

मेरी कहानी 119

बहादर का एक दोस्त था हरबलास, यह भी निंदी की मासी के घर के नज़दीक ही रहता था, यह जात का चर्मकार था लेकिन हमारी इस दोस्ती में जात पात कोई माने नहीं रखती थी। सब से बड़ी बात थी, हरबलास की पत्नी जो बहुत सुन्दर थी लेकिन हंसमुख अपनी सुन्दरता से भी ज़िआदा थी। हरबलास की बहादर से दोस्ती शाएद बहादर के चाचा जी केसर सिंह की वजह से हुई थी लेकिन मैंने हरबलास को इंडिया में ही देखा हुआ था। हरबलास फगवाड़े के हैड पोस्ट ऑफिस में क्लर्क लगा हुआ था। स्कूल कालेज के वक्त कभी कभी मैं इस से टिकट बगैरा लेने जाया करता था।

फिर एक दफा तो ऐसा हुआ कि मेरे बड़े भाई ने अफ्रीका से मेरे लिए पोस्टल आर्डर भेजे थे और जब पोस्टल आर्डर कैश कराने के लिए मैं पोस्ट ऑफिस गिया तो हरबलास ही काऊंटर पर था। मैंने हरबलास के आगे वोह पोस्टल आर्डर लोहे की सीखों वाली छोटी सी खिड़की के नीचे से सरका दिए और पैसे देने को कहा, तो हरबलास बोला, “एक गवाह लाओ जो मुझे भी जानता हो और तुझे भी जानता हो ” मैंने कहा , “ऐसा गवाह मैं कहाँ से लाऊं जो मुझे भी जानता हो और तुझे भी?”. हरबलास बोला, “यह मैं नहीं जानता, यह जानना तुमारा काम है” और उसने पोस्टल आर्डर खिड़की से बाहर सरका दिए। मैं मायूस हो कर आ गिया।

जब मैं पोस्ट ऑफिस से बाहर आया तो मैंने बहादर के चाचा जी मास्टर गुरदिआल सिंह को देखा। मैं उनकी तरफ गिया और बोला, “मास्टर जी, आप उस क्लर्क को जानते हो ?” गुरदिआल सिंह बोला, “चलो देख लेते हैं “. खिड़की पर जाते ही गुरदिआल सिंह हरबलास को बोला, “यार तुम वोह तो नहीं हो, जिस का एक रिश्तेदार इंग्लैण्ड में रहता है? ” गुरदिआल सिंह ने उस का नाम लिया, तो हरबलास ने हाँ बोल दिया, फिर उस ने वोह पोस्टल आर्डर उस के आगे कर दिए और बोला, “यार इसे कैश तो कर दो “. पता नहीं हरबलास के दिमाग में किया आया, उसने उसी वक्त पैसे मुझे दे दिए.
बस मेरी और हरबलास की यह ही मुलाकात थी।

जब पहली दफा मैं बहादर के साथ हरबलास के घर गिया तो देखते ही मैंने बोला, “यार , तुम तो फगवाड़े पोस्ट ऑफिस में काम करते थे “. फिर मैंने वोह पोस्टल आर्डर वाली बात याद कराई तो हरबलास बोला, “गुरमेल सिंह ! पोस्ट ऑफिस में फ्राड बहुत होते हैं, कई दफा बिदेशों से मनी आर्डर आते हैं और उनके घर की कोई अन्य सत्री या मर्द अपने आप को सही बता कर पैसे ले जाते थे और हमें प्राब्लम होती थी, हमें पोस्ट मास्टर को जवाब देना होता था, इसी लिए हम जितनी देर शोअर नहीं कर लेते थे, पैसे नहीं देते थे”. बस इसी मुलाकात के बाद मेरी दोस्ती भी कुछ कुछ हरबलास से हो गई थी लेकिन बहादर की दोस्ती तो उस परिवार से सगे सम्बन्धिओं की तरह ही है।

अब हरब्लास से मिल कर महसूस हुआ कि वह बहुत ही शरीफ था और मिहनती भी बहुत था, छोटे मोटे घर की रिपेयर के काम वह खुद ही कर लेता था और एक छोटी सी बात मैंने भी उससे सीखी थी, जब वह अपनी किचन में पलस्तर कर रहा था। हरब्लास के सभी बच्चे माँ पर ही गए थे। हरब्लास बहुत ही सलिंम था और वजन का भी बहुत हल्का था लेकिन मुझे यह कभी समझ नहीं आया कि उस को हार्ट अटैक क्यों हुआ होगा किओंकी वह अपने खाने के प्रति भी बहुत सावधान था। जब वह इस दुनियाँ को अलविदा कह कर गया तो उस की उम्र शायद पचास के इर्द गिर्द ही थी। अभी कुछ अर्सा पहले बहादर ने मुझे बताया था कि हरब्लास की पत्नी भी यह दुनियाँ छोड़ गई है और उन के बच्चे तो अब बहुत अच्छी तरह रहते हैं। हरब्लास की याद मुझे इस लिए आती है क्योंकि वह भी कभी कभी हमारी महफ़िल का हिस्सा होता था, उस का वह चेहरा मुझे भूला नहीं है और मैं हरब्लास को भी अपनी यादों की डायरी में सम्भाल कर रखना चाहता हूँ।

बर्मिंघम हमारे दूसरे घर की तरह ही रहा है क्योंकि बर्मिंघम में हमारे बहुत रिश्तेदार और दोस्त हैं। हमारी इस क्लब में जगदीश का नाम वर्णनयोग है और बहादर और जगदीश तो अभी भी रोज़ लाएब्रेरी में मिलते हैं और रिटायरमैंट का लुत्फ लेते हैं। जगदीश हम से काफी बड़ा है लेकिन देखने में हम से छोटा लगता है और उस की सिहत हम सब से अच्छी है। जगदीश ने कुकिंग का काम हेमराज से ही सीखा था और इस काम में उसे इतनी महारत मिली कि इस काम का उसने बिज़नैस ही शुरू कर दिया और उस को हर हफ्ते किसी न किसी शादी में केटरिंग का काम करना होता था, वह बहुत प्रसिद्ध हो गया था और उस के बनाये खाने बहुत पसंद किये जाते थे और हमारी बड़ी बेटी पिंकी की शादी में भी उस ने ही खाने बनाये थे।

उसकी पत्नी उतरा बहुत अच्छे सुभाव की स्त्री है और जब भी हम सब इकठे होते थे तो घर के सदस्यों की तरह ही बैठते थे और कभी कभी जब जगदीश और बहादर की किसी बात पे बहस हो जाती तो उतरा बहादर का पक्ष ही लेती थी। उतरा बहुत ही सूझवान है। ज़्यादातर हम बहादर के घर ही इकठे होते थे और वहां हर टॉपिक पे बात होती थी, कभी कभी महफ़िल गर्म हो जाती थी लेकिन कोई ऐसी बात नहीं थी कि कोई किसी की बात पर गुस्सा करे। कभी कभी बाऊ जी घड़ी साज के लड़के बिल्ला और इन्दर और उन की पत्नीआं भी आ जाते तो महफ़िल और भी गर्म हो जाती। वह सभी तो अब भी मिलते हैं लेकिन मैं ही इस महफ़िल को अब मिस करता हूँ क्योंकि मैं अब जा नहीं सकता।

इस के इलावा और भी ऐसे लोग थे जो हमारी इस महफ़िल का हिस्सा हो जाते थे और सारा कमरा भर जाता था। हम सब की पत्नीआं खाने बनाने के लिए किचन में मसरूफ हो जाती थीं और आखर में मज़े से खाते थे। जो मज़ा इस महफ़िल का आता था ,उस को वर्णन नहीं किया जा सकता और आज मैं इस को बहुत मिस करता हूँ। इन बातों को मैं इस लिए ही लिख रहा हूँ कि यह यादें मेरी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा है, इन के बगैर मेरी ज़िंदगी खाली लगेगी। आधी रात को जब हम बिछुड़ते थे तो गाडिओं में बैठते बैठते भी बहुत देर तक बातें करते रहते थे।

हा हा, याद आया, बहादर के एक पड़ोसी थे जिस का नाम था चन्नी और इस शख्स ने तो मेरा नाम चिमटे वाले संत रखा हुआ था। एक दफा मैंने एक जोक छोड़ी थी जिस में चिमटे का ज़िकर आता था और उस दिन से ही चन्नी ने मेरा नाम चिमटे वाले संत रख दिया था। यह महफ़िल क्या होती थी, बस एक कॉमेडी सर्कल ही होती थी। कभी कभी बहादर का दोस्त परमिंदर भी अपनी पत्नी रुपिंदर और बच्चों के साथ आ जाता था। परमिंदर की पत्नी के ननिहाल हमारे गाँव में ही हैं और उसके माता जी मेरी बहन की सखी है। परमिंदर ने राधा सुआमी धर्म अख्तयार किया हुआ है और राधा सुआमी मीट अंडा और शराब से परहेज़ करते हैं लेकिन परमिंदर हर पब्ब या क्लब्ब में हमारे साथ जाता था। वह कोक या कोई और ड्रिंक ले लेता था। परमिंदर एक कामयाब बिज़नैस मैंन है और उन के बच्चे भी बहुत अच्छे हैं।

अब मैं एक ऐसे शख्स का ज़िकर करने जा रहा हूँ जो नहाएत ही नेक इंसान था। यह था डाक्टर नसीम और यह पकिस्तान से था। बहादर की पत्नी कमल कुछ साल डाक्टर नसीम की सर्जरी में रिसेप्शनिस्ट रही थी। बहादर के परिवार और डाक्टर नसीम के परिवार के आपस में बहुत अच्छे सम्बन्ध थे। कभी कभी डाक्टर नसीम बहादर के घर रविवार के दिन खाना खाने के लिए आता रहता था और बहुत दफा हम भी वहीँ होते थे। नसीम किचन में जा कर खुद मच्छी कुक करता था, कभी मीट भी बनाता। उस की बनाई मच्छी मैंने भी एक दो दफा टेसट की थी और इस में कोई शक्क नहीं कि मच्छी बहुत ही टेस्टी होती थी और बहादर कभी कभी नसीम को हंस कर कहता, ” डाक्टर साहब, आप गलत प्रोफैशन में चले गए, आप का तो कोई रैस्टोरैंट होना चाहिए था क़्योंकि आप इतने बडीआ खाने बनाते हो कि आप का होटल हर दम भरा रहता “.

नसीम की पत्नी बहुत वर्ष हुए दिल की बीमारी के कारण अल्ला को पियारी हो गई थी, वैसे तो डाक्टर नसीम की सिहत भी अच्छी थी और उम्र भी 80 के ऊपर थी, फिर भी एक ना एक दिन तो सब ने जाना ही है और वह भी अपनी पत्नी से जा मिले। हमारी मुलाकात उनसे कोई ज़्यादा नहीं हुई लेकिन उन की बातों से मैंने बहुत कुछ सीखा था। क़्योंकि वह डाक्टर थे और उन की सर्जरी मरीजों से भरी रहती थी और वह माने हुए डाक्टर थे । वोह घर के पिछवाड़े तरह तरह की मुर्गीआं भी रखते थे और कई नस्लों और देशों की मुर्गीआं उन के पास थीं, 1982 में मैंने भी उन के लिए इंडिया से छै अंडे ला कर दिए थे जो फाइटिंग कौकस के अंडे थे। यह अंडे मुझे बहादर के भाई हरमिंदर ने कहीं से ला कर मुझे दिए थे और मैं बड़ी मुश्किल से सम्भाल कर लाया था किओंकी मुझे डर था कि कहीं टूट ना जाएँ लेकिन उन अण्डों में से एक ही बच्चा निकल सका था। डाक्टर नसीम मुर्गों पर कोई किताब भी लिख रहे थे लेकिन मुझे पता नहीं कि वह इस किताब को खत्म कर पाये थे या नहीं।

एक बात वह बताया करते थे कि यह जो पाकिस्तान से हकीम और मुल्ला आये हुए हैं, यह लोगों की सिहत से खिलवाड़ करते हैं, कोई देसी दवाई खा रहा है, कोई होमिओपैथी की दवाई ले रहा है, कोई कुछ और कोई कुछ और जब मर्ज़ बहुत बढ़ जाती है तो हमारे लिए भी मुश्किल हो जाता है। फिर सर्जरी में आ कर रोते हैं, एक तो यह लोग अपने पैसे की बर्बादी करते हैं, दूसरे अपनी सिहत का नुक्सान कर लेते हैं। इन लोगों को यह समझ नहीं आती कि इंगलैंड में दुनियां में सब से अच्छी सिहत सुभिधाएं हैं और यह बिलकुल फ्री हैं फिर भी इन लोगों को समझ नहीं आती। देसी दवाई खाने से बहुत लोगों को हार्ट अटैक हुए हैं ,बहुत लोगों का बीपी इतना बड़ा कि उन को स्ट्रोक हो गए। एक ही बात की रट हमारे लोग लगाते रहते हैं कि अंग्रेजी दवाइओं के साइड इफैक्ट बहुत हैं, यह खानी नहीं चाहियें लेकिन जब देसी दवाईयां खाने से कुछ हो जाता है तो बहुत देर हो चुक्की होती है।

एक और बात वह कहते थे हमारे लोग खून दान और अंग दान करने से हिचकचाते हैं। अंग तो कोई मुसलमान दोने को राजी ही नहीं होता, कहते हैं अल्ला पाक के पास अधूरे शरीर के साथ कैसे जाएंगे लेकिन जब इन लोगों को खुद को किसी के अंग की जरुरत होती है तो इंकार नहीं करते। ऐसी बहुत सी और भी वह बातें किया करते थे लेकिन बहुत बातें याद नहीं। डाक्टर नसीम धार्मिक विचारों के थे और बर्मिंघम में एक बहुत बड़ी मस्जिद के वह एक सीनियर थे और कभी कभी उन की इंटरवयू बीबीसी पर भी आती रहती थी।

डाक्टर नसीम की बातों से मुझे बहुत फायदा हुआ किओंकी मैं खुद हाई बी पी का पिछले चालीस सालों से मरीज़ हूँ लेकिन मेडिकेशन लेने से मेरा बीपी कभी भी हाई नहीं हुआ और ना ही कोई साइड इफैक्ट। हर छै महीने बाद डाक्टर चैक कर जाता है और हर वक्त नॉर्मल ही होता है लेकिन दवाई के साथ साथ मैं अपनी खुराक का भी बहुत धियान रखता हूँ। हाई बीपी हमारे सारे खानदान में है जिसका हमें पता नहीं था। मेरी माँ हमेशा सर दर्द के लिए उन दिनों ऐस्प्रो की गोळ्यां लेती रहती थी। उस का खाना भी बहुत सादा घर का खुद बनाया ही होता था ,मठाई तो साल छै महीने बाद ही कभी खाती थी, फिर भी जब मैं यहां था तो 1965 में माँ को अधरंग हो गया और चारपाई पर पढ़ गई।

पिता जी गाँव में ही थे ,इस लिए उन्होंने फगवाड़े से डाक्टर केहर सिंह को बुलाया। केहर सिंह एक कुआलिफाइड MBBS डाक्टर था जिस की सर्जरी बंगा रोड पर होती थी। उस के इलाज से माँ छै महीने बाद चलने फिरने लगी और घर के सारे काम जैसे गाये भैंस को चारा देना और उन को पानी पिलाना कीया करती थी यहां तक कि चारे वाली मशीन से चारा भी काट लेती थी । इस के बाद माँ ने ज़िंदगी में एक दिन भी दवाई मिस नहीं की और स्ट्रोक के 35 साल बाद साल 2000 में इस दुनीआं से अपनी उम्र भोग कर उस ने अलविदा कह दी।

डाक्टर नसीम की यही बात मैं काम पर भी अपने साथिओं को बताता रहता था किओंकि हाई ब्लड प्रैशर एक कॉमन बीमारी है जो बहुत लोगों को है लेकिन सही इलाज से इन्सान अपनी नॉर्मल जिंदगी बतीत कर सकता है। पुरातन समय में किसी को ब्लड प्रैशर के बारे में पता नहीं होता था और ना ही बल्ड प्रैशर चैक करने वाली कोई मशीन या ऐसी दवाइयां होती थीं। हमारे काम पर बहुत लोगों को ब्लड प्रैशर था। तीर्थ चुहान एक चालीस वर्ष का सुन्दर नौजवान था। जब मुझे बीपी हुआ था तो उन दिनों मैं रोज़ दौड़ने के लिए जाता रहता था, मैं बहुत सलिम हो गया था, डाक्टर की दवाई भी लेता था और बीपी नॉर्मल हो गया था।

चुहान मुझे रास्ते में मिला और बोला, ” मिस्टर भमरा तुम्हारे चेहरे पर वह पहले वाली रौनक नहीं दीख रही, किया बात है “. मैंने कहा यार मुझे हाई बलड प्रैशर हो गया है। तो चुहान बोला, ” डाक्टर से दवाई ना लेना, इस के साइड इफैक्ट बहुत बुरे हैं, मुझे भी हुआ था, जब डाक्टर ने मुझे गोलिआं दीं तो मैंने उस के आगे फेंक दी कि तू मुझे खराब कर रहा है, भमरा !मैं तुझे बताऊंगा, एक हकीम है जिस से मुझे बहुत फायदा हुआ है “.

इस घटना के तकरीबन दो महीने बाद चुहान को जबरदस्त हार्ट अटैक हुआ और छोटी सी उम्र में अपनी बीवी को छोटे छोटे बच्चों के साथ विधवा कर गया। अब उस की बीवी विचारी अकेली रहती है किओंकी उस की बहु तो उस के पास आती ही नहीं, सिर्फ बेटा ही कभी कभी आता है। इसी तरह एक और साथी बाहड़ा मुझे बताने लगा कि वह इंडिया गया था और वहां एक हकीम से बलड प्रैशर की दवाई ली थी और अब वह बिलकुल ठीक ठाक है और डाक्टर की दवाई उस ने छोड़ दी है। मैंने उस को कहा, ” बाहड़ा साहब, प्लीज़ डाक्टर की दवाई ना छोडिए किओंकी यह आप के लिए खतरनाक साबत हो सकता है “. बाहड़ा हंस पड़ा और बोला, ” भमरा साहब यही तो आप को पता नहीं कि हमारी पुरातन आयुर्वैदिक दुआयों में कैसी कैसी शक्तिआं हैं और इन के कोई साइड इफैक्ट भी नहीं हैं “. इस के बाद मैं कुछ नहीं बोला।

कुछ दिनों बाद पता चला कि बाहड़ा घर में ही चक्क्र खा कर गिर पड़ा था और उस का बीपी बहुत हाई हो गया था। कुछ दिनों बाद जब बाहड़ा काम पर आया तो मुझे बोला, ” भमरा तू सही था और भगवान् का शुकर है मैं बच गया “. इस बात को पचीस वर्ष हो गए होंगे और अब बाहरा पिछले दस साल से रिटायर है और एक गुर्दुआरे में प्रधान की पदवी पर है और बिलकुल फिट है ,कभी कभी मेरी पत्नी को गुर्दुआरे में मिलता रहता है और बिलकुल सही है।

इसी तरह एक और साथी था बलदेव ग्रेवाल जिस के सर पर देसी दवाइओं का भूत सवार था, वह बस चला रहा था और उसको बस पर ही स्ट्रोक हो गया। एक्सीलरेटर से उस का पैर उठ गया और उस की बस स्लो हो गई और सड़क के इधर उधर जाने लगी। सामने की ओर से एक गोरा ट्रक्क ले कर आ रहा था, उस की कॉमन सैंस काम कर गई और उस ने अपने ट्रक्क को बस के सामने ला कर खड़ा कर दिया, जिस से बस खड़ी हो गई और भरी बस में बैठे सभी लोग बच गए लेकिन बलदेव हसपताल में जा कर भगवान् को पियारा हो गया।
इसी बात से मैं डाक्टर नसीम का बहुत ऋणी हूँ क़्योंकि हम को उस की बातों से बहुत फायदा हुआ है ।

चलता। . . . . . . . . .

 

8 thoughts on “मेरी कहानी 119

  • Man Mohan Kumar Arya

    Aaj ki kahani bhee pahle ki hee bhanti Bahut upyogi hai. Apka lekhan stutya va upadey hai. Namaste awam dhanyawad adarniy Sh Gurmail Singh ji.

    • धन्यावाद मनमोहन भाई .

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन …. ज्ञानप्रद आलेख

    • धन्यवाद बहन जी .

    • धन्यवाद बहन जी .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, कल हमने डिप्रेशन पर ब्लॉग लिखा था, आज आपका सारा ही एपीसोड स्वास्थ्य पर आधारित है, आज 7 अप्रैल आज वर्ल्ड हेल्थ डे है। स्वास्थ्य इंसान के लिए सबसे बड़ा धन है. दवाइयों का प्रयोग बहुत सोच-समझकर करना चाहिए. स्मरणीय एपीसोड के लिए आभार.

    • लीला बहन, आप ने सही कहा है कि दुआइओन का पर्योग सोच समझ कर करना चाहिए और डाक्टर से मशवरा जरुर लेना चाहिए और उन को बताना जरुर चाहिए कि हम अन्य कौन सी दुआई ले रहे हैं .

    • लीला बहन, आप ने सही कहा है कि दुआइओन का पर्योग सोच समझ कर करना चाहिए और डाक्टर से मशवरा जरुर लेना चाहिए और उन को बताना जरुर चाहिए कि हम अन्य कौन सी दुआई ले रहे हैं .

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