इंतज़ार
सुबह से वो बूढ़ी आंखें ज़रा सी आहट पर दरवाज़े की ओर निहार रहीं थी। मां जल्दी से खाना खा लो यह कहकर उनकी बहु पूजा पास आई और उसे पता चल चुका था कि मां अपने बेटे से मिलने के लिए बेताब है। विकास उनका छोटा बेटा था जो ट्रेनिंग के लिए गांव से बाहर गया था और अभी उसकी नौकरी भी वहीं किसी मल्टीनैशनल कंपनी में लग गई थी। कुछ दिन पहले ही उसने मां को फोन पर बताया था। पूजा और रवि मां के साथ रहते थे।
कितने साल हो गए थे विकास को गांव से बाहर गए हुए वो घर कम ही आता था। अगर आता भी था तो बस एक दो रोज़ रुककर चला जाता था। शुरु से ही गांव में रहना उसे पसंद नहीं था। पहले पढ़ाई के लिए गांव से बाहर गया था फिर ट्रेनिंग भी बाहर अब नौकरी भी उधर ही कंपनी में करके उसने घर में एक तरह से बता दिया था कि वो वहीं रहेगा। गांव म रखा ही क्या है उसे अपना भविष्य भी तो बनाना है।
पूजा और रवि ने भी समझाने की कौशिश की मां को तुम्हारी बहुत याद आती है वो छुप छुप कर रोती रहती हैं। कुछ देर उनके पास भी आकर रहा करो या गांव में ही तुम कुछ अपना काम शुरु करो। तुम्हारे पास ज़मीन है मैं तुम्हारा साथ दूंगा पर विकास कुछ समझने को तैयार नहीं था। उसने शहर में ही अपनी छोटी सी दुनिया बसा ली थी उसे वहीं अच्छा लगता था। कल मां ने फोन किया तो रो पड़ीं थी अब तो उसने अपना फ्लैट भी ले लिया था। पहले कहीं एक छोटा सा कमरा ले रखा था तो मां पास आने की ज़िद्द करती तो यही जबाब मिलता रहने की तंगी है जब अपना फ्लैट लूंगा तब तुम्हें लेने आंऊगा।
मां का मन तड़पता था विकास से मिलने के लिए, उसे आफिस जाते अच्छे कपड़ों में देखने को!उसने तो एक एक करके दिन गिने थे पहले पढ़ाई खत्म हो जाए तब तक, फिर ट्रेनिंग खत्म हो जाए तब तक और अब नौकरी के बाद उसके घर आने का इंतज़ार! पर मां की किस्मत में शायद यही इंतज़ार लिखा था। पिता जी तो काफी पहले के गुज़र चुके थे। मां तो बस महीनो इंतज़ार करती रहती अगर विकास आता भी इतनी देर के बाद तो वो भी एक दो दिन के लिए।
मां ने दिल पर पत्थर रखकर उसे भेजा था कि कुछ बन जाए फिर वो सदा मेरे साथ रहेगा । हमारे दिन बदल जाएंगे हम भी शान शौकत की ज़िंदगी जी पाएंगे। इतनी मेहनत और तपस्या का यह सिला था बस इंतज़ार! पूजा ने मां को खाना खिला दिया था पर विकास का कोई पता नहीं था। रवि भी काम से घर आ चुका था मां ने रवि को फोन करने को कहा कि वो विकास का पता तो करे कि कब आ रहा है उसने तो सुबह आने को कहा था। वो कब आएगा और कब हम वहां के लिए निकलेंगे पर विकास का फोन नहीं मिल पा रहा था।
रात होते होते रवि को भी बहुत गुस्सा आ रहा था। विकास को क्या हो रहा है यह तो बिल्कुल लापरवाह और निर्मोही होता जा रहा है,न तो हमारी परवाह है न मां की भावनाओं की। रवि की काफी देर कौशिश के बाद फोन मिल गया उसने फिर विकास पर सारा गुस्सा निकाला और कहा कि तुम्हें क्या हो गया है न घर आते हो और न ही मां को अपने पास आने देते हो मिलने के लिए। हमारी न सही मां की खातिर ही फोन तो कर दिया होता कि नहीं आ पाऊंगा।
‘भैया वो मैं बताने ही वाला था’ कुछ हिचकिचाहट भरी आवाज़ में विकास ने कहा ‘भैया मुझे एक लड़की पसंद थी उसके मी पापा शादी का दबाब बना रहे थे। लड़की थोड़ी आधुनिक है उसे गांव की बोली और मां के पुराने विचार शायद ही पसंद आएंगे इसीलिए मैं ही कभी कभी मां से मिलने आ जाया करूंगा । मां को यहां नही ला सकता तुम किसी तरह से मां को समझा देना हां शादी से पहले मां और आपको उसे मिलाने ले आंऊगा। भैया मैं बहुत परेशान हूँ आप ही मां को समझा दिजिएगा। अब मेरा रहन सहन और ज़िंदगी बदल चुकी है न मैं आपके साथ रह पाऊंगा न ही आप मेरे साथ।’
रवि की आंखों से झर झर आंसू टपक रहे थे उसने फोन बंद कर दिया और उस दिन को याद करने लगा जब विकास को कितनी मुशकिल से अपने सपने साकार करने मां ने दिल पर पत्थर रख कर गांव से कोसो दूर बड़े शहर में कुछ बनने के सपने देखकर भेजा था। सोचा था हमारे साथ रहेगा वो तो मां के पास नहीं रह सकता कम से कम मां तो कुछ दिन उसके पास रहकर उस को नौकरी पर जाते देख सकती थी अपने अरमानों को पूरा होते देख सकती थी । पर अब फिर शुरू हुआ था मां का अपने बेटे को अच्छी नौकरी मिलने पर साथ रहने का सपना जिसमें लम्बे इंतज़ार के बाद फिर इंतज़ार ही लिखा था कभी खत्म न होने वाला इंतज़ार !