संस्मरण

मेरी कहानी 120

आज मैं फिर सुरिंदर के बारे में ही बातें लिखूंगा। सुरिंदर की शादी तो धूम धाम से हो गई थी लेकिन क्या वोह इस शादी से खुश थी ? नहीं, वोह खुश बिलकुल ही नहीं थी,सिर्फ खुश होने का नाटक ही कर रही थी। करती भी किया, वोह तो भारतीय सभियता के मकड़ जाल में फंस कर रह गई थी जिस में से निकलना असम्भ था।  सुरिंदर के सकूल छोड़ते ही उसकी शादी हो गई थी। सुरिंदर बहुत ही  इंटैलिजेंट लड़की थी, पौलेटिक्स में तो वोह बहुत ही जानकारी रखती थी।  हर बात पे बहस करने में उस को मुहारत हासल थी। उस समय जितने भी पंजाबी या गुजराती भारत से आये थे, वोह ज़िआदातर गाँवों से ही आये थे, अगर कोई किसी शहर से आया भी तो छोटे छोटे शहरों से ही आया था।  हम अपने साथ भारतीय सभियता ले कर आये थे और पछमी सभ्यता से हमारा कोई लेना देना ही नहीं था।  किसी अँगरेज़ के घर हमारा आना जाना नहीं था।  अगर किसी पड़ोसी अँगरेज़ के घर से हमारा मिलन ज़िआदा होता तो हम इस को बहुत बड़ी बात समझते थे और दूसरों को इस के बारे में बताते और इस में अपना प्राइड समझते थे लेकिन हम अपने बच्चों को उन के बच्चों की  तरह घूमने फिरने के बिलकुल हक्क में नहीं थे किओंकि हमारी सभ्यता में लड़के लड़किओं का आपस में मेल जोल उस वक्त बिलकुल गवारा नहीं करता था।  हमारी बदकिस्मती यह थी कि हमारे बच्चे इंगलैंड में पैदा हुए थे और यहीं के सकूलों कालजों में पड़ रहे थे और हम थे रूड़ीवादी विचारों के। लड़किओं के भारतीय कपडे जैसे शलवार कमीज़ को ले कर बहुत जदोजहद हुई थी। हमारे बच्चे बीच में पिस रहे थे। मेरे और बहादर जैसे लोगों के लिए तो यह बातें कुछ नहीं थीं लेकिन बहुत लोग ऐसे थे जो लड़किओं की इज़त को ले कर बहुत घबराते थे।  हमारे लोग लड़किओं को शलवार कमीज़ पहनने को कहते थे तो वोह हिचकिचाती थीं किओंकि उन को भय था कि अगर किसी सकूल के लड़के या लड़की ने देख लिया तो वोह उनको सकूल में छेड़ेंगे। बस्सों में काम करते हुए मैंने बहुत देखा था जब लड़कियां घर से शलवार कमीज़ पहन कर आती थी तो बाहर आकर किसी के घर जा कर सकर्ट जम्पर पहन लेती थीं। अक्सर मैं इन लड़किओं की बातें सुनता रहता था, बहुत दफा तो यह लड़कियां  मेरी ओर भी इशारा करके एक दुसरी को कह देती,” eh! careful ! he,ll tell your dad”.

                रिश्ते करते वक्त हम अपने बच्चों को किया किया कहते, यह हर एक घर की अपनी अपनी कहानी है। ज़्यादातर हमारे लोगों की एक ही कहानी थी, हम बच्चों को समझाते, ” देखो बेटा ! जिस घर में तू जा रही है, यह लोग बहुत अच्छे हैं, लड़का बहुत शरीफ है, खानदान अच्छा है, पैसे वाले लोग हैं ” और भी  पता नहीं किया किया। आखर में बच्चे मान जाते और शादी हो जाती। लड़कियां जब सुसराल जातीं तो आगे होती  गाँव से आई औरतें जिन की यह ही खाहश होती कि बहु आएगी तो उसको सुख मिलेगा। मैं यह नहीं कहूंगा कि सभी औरतें ऐसी थीं लेकिन बहुगिंती ऐसी औरतों की ही थी ख़ास कर उस समय। मैं इन औरतों का कोई कसूर भी नहीं मानता किओंकी एक तो वोह गांव से आते वक्त पुराने विचार लेकर आई थीं, दूसरे इनमें ज़्यादा औरतें पडी लिखी भी नहीं थी। ऐसे हालात में एक कल्चरल कलैश की स्थिति पैदा हो गई थी। आज तो भारत में भी लड़कियां बहुत पढ़ लिख गई हैं और भारत में भी मालूम होता है कि ऐसी ही स्थिति शुरू हो गई है। हमारे नज़दीक ही एक औरत है जिसने तीन दफा अपने बेटे की शादी भारत आकर की और तीनों बहुओं को बच्चे होने के बाद छोड़ दिया किओंकी बेटे उस बुड्या का कहा मानते हैं। हम को पता है कि इस बुड्या की सोच 100 साल पुरानी है लेकिन किसी को किसी के घर से किया लेना देना, वैसे भी इस देश में आप किसी को कुछ नहीं कह सकते।
सुरिंदर को अब एडजस्ट तो होना ही था लेकिन वह लोग पैसे वाले तो थे लेकिन उन की सोच बहुत ही पुरानी, वैहमों भर्मों वाली,जियोतिषिओं और साधू संतों के पास जाने वाली थी। फुफड़ तो बहुत फारवर्ड विचारों का था लेकिन हमारे समाज में यह बात कि बेटी वाले को बहुत कुछ सहना पड़ता है, फुफड़ को सहना पड़ रहा था। जब भी फुफड़ का समधी आता (नाम नहीं लिखूंगा), फुफड़ को शराब से ही आवभगत करनी पड़ती, यूं तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी लेकिन यह शख्स कुछ मगरूर किस्म का था, मुझे तो देखते ही उस से नफरत होने लगती थी,  उसकी हर बात में लड़के का बाप होने का रोअब झलकता था।  समय के साथ साथ सुरिंदर को एक बेटा और एक बेटी पैदा हुए। घर का जो वातावरण था वह सुरिंदर के लिए असह्नय हो रहा था और घर में कड़वापन आना शुरू हो गया, सुसराल वाले उस को साधू संतों के पास ले जाने को कहते लेकिन वह बिलकुल मानती नहीं थी और इस बात का असर सुरिंदर पे होना शुरू हो गया था, उस में चिड़चिड़ापन आना शुरू हो गया था और किसी ने यह जान्ने की कोशिश नहीं की कि सुरिंदर पर डिप्रैशन ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। साथ ही यह बातें फुफड़ पर भी असर करने लगी,एक दफा फुफड़ ने मुझे बताया कि उस का समधी जब फुफड़ के घर आया तो उस से लड़ाई झगड़ा करने लगा कि उन्होंने लड़की को किया शिक्षा दी थी, और फिर समधी अपना जूता दिखाने लगा तो फुफड़ ने बताया कि उस ने भी समधी को कहा कि जूता उस के भी पास है। सुरिंदर की मासी ने यह रिश्ता कराया था  और अब दोनों ओर से मासी को ब्लेम आने लगा कि उसने कहाँ फंसा दिया था ।
इस शादी के चार पांच साल बाद ही 1983 में एक दिन अचानक बुआ का टेलीफोन आया कि फुफड़ को हार्ट अटैक हुआ है। कुलवंत को ले कर हम सीधे डडली रोड हसपताल जा पहुंचे, सभी फुफड़ की बैड के इरद गिर्द बैठे थे, मशीनें लगी हुई थीं और ग़मगीन वातावरण था। शाम को हम वापिस आ गए और सुबह को हमें फिर टेलीफोन आया की फुफड़ को होश आ गई है और बचाव हो गया है। फिर शाम को हम फिर हस्पताल जा पहुंचे और फुफड़ अब बातें करने लगा था। जो जो डाक्टर कर रहे थे, फुफड़ ने हमें बताया कि उसको एस्प्रीन दी जा रही थी ताकि खून पतला हो सके।  ऐसे ही हम रोज़ रोज़ हसपताल जाते और मैं फुफड़ से हंसी मज़ाक करता कि “फुफडा जल्दी जल्दी ठीक हो के घर आ जा और मैं हफ्ते में दो दफा बर्मिंघम आ जाया करूँगा और मिल कर हम जौगिंग किया करेंगे “. लग रहा था कि जल्दी ही हसपताल से छुटी हो जायेगी लेकिन एक दिन अचानक बंब गिरा, पता चला कि फुफड़ हम सब को छोड़ कर दुसरी दुन्याँ में चले गया है। हैरान और घबराए हुए हम हसपताल जा पहुंचे। ऐसे समय में किया वातावरण होता है, लिखने की जरुरत नहीं लेकिन वार्ड के अन्य मरीज़ यही बोल रहे थे कि फुफड़ रोज़ वार्ड में घूमा करता था और उनसे बातें किया करता था, आज सुबह वह कॉरिडोर में घूम रहा था कि अचानक गिर गया और यह दुन्याँ छोड़ गया.
ज़्यादा न लिखते हुए इसी बात पर ही आ आऊंगा  कि फुफड़ के घर में रोज़ रोज़ रिश्तेदार और दोस्त अफ़सोस ज़ाहर करने के लिए आते। सुरिंदर बिलकुल रो नहीं रही थी जैसे उसको कुछ पता नहीं कि किया हो गया था। औरतें उस को फुफड़ के बारे में बतातीं लेकिन वह एक दम शांत थी और इधर उधर देख रही थी। रोना धोना तो सारा  दिन चलता ही रहता था लेकिन यहां के पैदा हुए बच्चों को ऐसी स्थितिओं का कोई  गियान नहीं था कि यह सब किया हो रहा था, किओंकी औरतें एक दूसरे के गले लग कर रो रही थीं और सुरिंदर के मन में किया था, किसी को कुछ पता नहीं था। एक छोटी सी बात मैं कभी भी भूला नहीं हूँ।  यह जो हमारे रीती रिवाज़ हैं इन  के बारे में मुझे अभी तक भी ज़्यादा गियान नहीं है, पता नहीं शायद इस लिए कि मुझे हमारे रीती रिवाज़ों से शुरू से ही नफरत रही है किओंकी इन रीती रिवाजों के कारण ही घरों में लड़ाई झगडे देखता आया हूँ जैसे, उसका यह फ़र्ज़ था और उस ने पूरा नहीं किया, मैंने उन की शादी में यह दिया और उन्होंने हमारी शादी पर घटिआ कपडे दिए, ऐसे ही और भी बहुत बातें देखि सुनी हैं जिसकी वजह से मुझे ऐसी बातों में दिलचस्पी है ही नहीं। मेरी पत्नी को इन सभी बातों का पता है, इसलिए यह उस का काम ही रहा है लेकिन बहुत दफा ना जान्ने की कीमत भी अदा करनी पड़ जाती है और ऐसा ही मेरे साथ हुआ।  सुरिंदर का पति जो मुझसे तो बहुत छोटा था, मुझसे बोला,” भा जी ! पिताजी को नहला कर जो सूट पहनाना है वह हमारा फ़र्ज़ नहीं है, यह निंदी के मामा जी का फ़र्ज़ है, कोई गलत फहमी न रहे तुम जाकर निंदी के मामा जी मघर सिंह से पूछ कर आओ कि यह किसका फ़र्ज़ है “. मैं भी पागल और मासूम मघर सिंह के घर चले गया किओंकी मघर सिंह का घर सामने ही था और किसी काम के लिए इधर ही आया हुआ था।  मैंने भी जा कर मघर सिंह को सुरिंदर के पति का सन्देश पहुंचा दिया। मघर सिंह ने मुझे घूर कर देखा और गुस्से में बोला,” वह कौन होता है ऐसी बातें करने वाला, मैं मर गया हूँ जो इतना खर्च भी नहीं कर सकता, जाह जाकर उसको कह दे कि उसको फ़िक्र करने की कोई जरुरत नहीं है “
मघर  सिंह की झिड़क सुन कर मुझे बहुत शर्मिंगी महसूस हुई और अपनी अकल पे मैं पछताने लगा कि किओं मैं ने मघर सिंह का दिल दुखाया जो बहनोई के स्वर्गवास हो जाने पर पहले ही दुखी था और साथ ही सुरिंदर के पति पर बहुत गुस्सा आया। इसके बाद मैंने कभी भी सुरिंदर के पति को नहीं बुलाया और यह बात मैंने आज तक किसी को नहीं बताई, आज ही लिखा है। इस समय मैंने यह भी महसूस किया कि यह जो लोग अफ़सोस के लिए आते हैं सिर्फ फ़र्ज़ के तहत ही आते हैं कि कोई कहे ना कि अफ़सोस पे आया नहीं , वर्ना किसी को कोई दुःख नहीं होता। याद नहीं कितने दिन लोग अफ़सोस के लिए आते रहे लेकिन इतना याद है कि घर हर दम भरा ही रहता था, हर शाम को खाना बनता और देर रात तक लोग बैठे रहते। जिस दिन फ्यूनरल था, उस दिन सुबह दस वजे बॉडी घर आणि थी, बहुत लोग घर के बाहर एकत्र हो गए थे, लोग फूल ला कर घर के बाहर रख देते और एक दूसरे से बातें करने लगते। ठीक वक्त पर एक बड़ी काले रंग की गाड़ी में बॉक्स लिए दो अँगरेज़ काले कपडे पहने आ गए। घर के सामने ही गाड़ी को खड़ी कर दिया और पिछली डोर खोल दी, हम कुछ लड़के आगे हुए और बॉक्स को गाड़ी से बाहर निकालने लगे, जिस में फुफड़ जी का शरीर था । बॉक्स बहुत ही खूबसूरत था। धीरे धीरे हम बॉक्स को घर के भीतर ले आये,और साथ ही एक गोरा बॉक्स के लिए एक स्टैंड ले आया,कमरे में जा कर उस ने स्टैंड फिक्स कर दिया और हम ने उस स्टैंड के ऊपर बॉक्स रख दिया, बॉक्स के ऊपर का हिस्सा गोरे ने एक सपाने से खोल दिया, अब फुफड़ जी का शरीर एक खूबसूरत सूट और पगड़ी में दिखाई दे रहा था, लगता था फुफड़ जी सो रहे हैं, चेहरे पे वह ही नूर था जो हमेशा देखते रहते थे।
मैं अपने आप को सम्भाल ना सका, मैं बहुत ही कम  रोया  था लेकिन आज मुझे पता नहीं किया हो गया था। बुआ जिन्दी निंदी,सब फुट फुट कर रो रहे थे। अब सुरिंदर के भीतर का जवालामुखी भी फट गया और इतना रोई कि पिछले सारे दिनों की कसर पूरी कर दी। अब सभी रिश्तेदार दोस्त एक एक करके बॉक्स के इर्द गिर्द चक्कर लगा कर फुफड़ जी का आख़री दीदार करते और दूसरे दरवाज़े से बाहर चले जाते। वाहेगुरु वाहेगुरु का जाप लगातार हो रहा था। एक एक करके सभी लोगों ने दीदार कर लिया और वक्त के मुताबिक फ्यूनरल वाले दोनों गोरे आये और उन्होंने बॉक्स का ऊपर का हिस्सा इज़त के साथ ऊपर रख दिया और सपाने  के साथ नट कस दिए। हमने बॉक्स को उठाया और एक गोरे ने स्टैंड नीचे से निकाल लिया और बाहर चला गया। हम ने बॉक्स को बाहर लाकर गाड़ी में रख दिया,गोरे लोगों ने बॉक्स को गाड़ी में फिक्स कर दिया और धीरे धीरे उन्होंने सभी फ्लावर सजाने शुरू कर दिए। गाड़ी फूलों के बुक्के जो जो लोगों ने लाये थे, उनसे गाड़ी भर गई। गाड़ी के पीछे पीछे सभी गाड़ियां चलने लगी और अब सभी ने पहले गुर्दुआरे जाना था। गुर्दुआरे जा कर एक दफा फिर बॉक्स को गुर्दुआरे के अंदर लाया गया, बहुत लोग जो घर नहीं आ सके थे, गुर्दुआरे में आ गए थे। गियानी जी ने अरदास की और फिर सभी बाहर आ गए और समिट्री (शमशान घाट )की ओर  चलने लगे जो काफी दूर थी। समिट्री पहुँच कर सभी ने अपनी अपनी गाड़ियां पार्क कीं और हाल की तरफ चलने लगे। यह समिट्री कई एकड़ जगह में थी और सभी ओर  कब्रें ही कब्रें दिखाई दे रही थी, बहुत गोरे लोग अपने अपने सम्बन्धिओं की  कब्रों पर फूल सजा रहे थे।
हम से पहले एक और फ़िऊन्रल था, जब वोह लोग बाहर आ गए तो हम बाक्स ले कर हाल के अंदर चले गए।  बाक्स को एक रैम्प पर रख दिया गिया था।  एक तरफ मर्द और एक तरफ औरतें बैंचों पर बैठ कर पाठ करने लगे थे। गियानी जी आये हुए थे। पाठ ख़तम होने पर गियानी जी ने अरदास की।  अब आख़री वक्त आ गिया जब फुफड़ जी को आख़री विदायगी होनी थी। निंदी और जिन्दी दोनों भाईओं ने बटन दबाया और बॉक्स धीरे धीरे रेलिंग पर अंदर की ओर  जाने लगा, और साथ ही पर्दा बंद होने लगा। एक दफा फिर रोना शुरू हो गया और  कुछ औरतें बुआ को सम्भाल रही थीं। एक दरवाज़े से सभी बाहर जाने लगे और चिमनी की ओर देखने लगे यहां से धुंआ निकल रहा था। कुछ ही मिनटों बाद एक और गाड़ी आ खड़ी हुई जो किसी अँगरेज़ का फ्यूनरल था। पर्दा गिर गया था,फुफड़ जी इस दुन्याँ की स्क्रीन से अलोप हो गए थे, अब  यहां किया रह गया था,सभी  अपने अपने घरों की ओर चल दिए।
चलता. . . . . . . . .

8 thoughts on “मेरी कहानी 120

  • Man Mohan Kumar Arya

    Aaj ki kahani me Jo sajeev varnan kiya hai use padhkar man bhar aaya. Jeevan shubh va ashubh karmo ko karne ke liye Milta hai. Gyani va viveki shubh karm karte hain jabki agyani aur murkh ashubh karm. Shubh karm prashansniy hote hain aur ashubh nindniya. Sansar aise hi chala aa raha hai aur aise hi chala jayega. Sadar Sh Gurmail ji.

    • मनमोहन भाई , आप ने ठीक ही कहा है . जो जीवन कथा मैं लिख रहा हूँ , वोह अकेले मेरी नहीं है , इन कौड़े मीठे तजुर्बों से हर एक को गुजरना पड़ता है , किसी को कम किसी को ज़िआदा , बस इसी का नाम ही जिंदगी है .

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, सुरिंदर की शादी का अनुभव अच्छा नहीं रहा. पर यह तो दुनिया है. अच्छे बुरे अनुभव होते रहते हैं. आपने बहुत मार्मिक तरीके से सच्चाई बयान की है. आपकी कलम इसी तरह चलती रहे.

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, सुरिंदर की शादी का अनुभव अच्छा नहीं रहा. पर यह तो दुनिया है. अच्छे बुरे अनुभव होते रहते हैं. आपने बहुत मार्मिक तरीके से सच्चाई बयान की है. आपकी कलम इसी तरह चलती रहे.

    • विजय भाई , इस जिंदगी में जो जीत गिया वोह ही सिकंदर ! . जो सुरिंदर के साथ हुआ, उस की कथा तो अभी बाकी है लेकिन दुनीआं में इतनी कितनी सुरिंदर हैं .

    • विजय भाई , इस जिंदगी में जो जीत गिया वोह ही सिकंदर ! . जो सुरिंदर के साथ हुआ, उस की कथा तो अभी बाकी है लेकिन दुनीआं में इतनी कितनी सुरिंदर हैं .

  • बस यही जिंदगी है ,सुख और दुःख साथ साथ चलते हैं .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, बहुत ही मार्मिक एपीसोड.

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