कविता : वेदना
बंद किताब से
सूखे फूल से
मंद – मंद ताकती
हसरतें दिलों की
कभी मजबूर कभी सिसकती कभी तड़पती
घायल सपनों का बोझ
लादे कन्धों पर
गिरते –पड़ते कदम लिए
मस्त अपनी ही धुन में ये ज़िन्दगी
है कौन सी राह करती इंतज़ार
जीवन के किस पथ पर
हर चेहरा भीड़ में
लगे मुखोटा पहने
नहीं बोलता इंसानी
जबान कोई
बने सब मतलब के सवाली
ऐसे में किताब में
समाया सूखे फूल – सा
झांकता यह दिल
मासूम सपनो को
सहलाता – बहलाता
दूर भीड़ से दूर
तन्हा बिल्कुल तन्हा
हर हाल में
मुस्कुराता आहें भरता
बेरंग मासूम दिल
………..ये अकेला !!
— मीनाक्षी सुकुमारन