कविता : जा तो रहे हो तुम
जा तो रहे हो तुम
चले जाओ शौक से
पर कुछ हिसाब है बाकी
वो चुका कर जाना
कुछ अधूरे सपने
कुछ उननींदि सी नींदे
कुछ जागते हुए ख्वाब
कुछ बुने सपनो के हिसाब
कुछ यादें,कुछ इरादे
संग मिलकर किये थे जो वादे
खाई थी जीने की जो कसमे
साथ मरने की वो रस्मे
तुम तो सब भुला बैठे
दामन हमसे छुड़ा बैठे
मगर कभी देखा पलट कर
क्या हालात हमारी है!
आधे तो मर ही चुके हैं
बस अब ख़ाक में ही
मिल जाने की तैयारी है।
प्रिया