धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

हनुमान जयंती

चैत्र माह की पूर्णिमा हनुमान जयंती के रूप मे मनाया जाता है, यह हिन्दुओ और पवनपुत्र के भक्तो के लिये अहम पर्व है, हनुमान जयंती को लेकर हिन्दू धर्मशास्त्रों मे कुछ मतभेद हैं, हनुमानजी की जयंती दो है चैत्रमास की पूर्णिमा, दूसरी कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी, चैत्र मास की पूर्णिमा को जन्मदिन के रूप मे मानातें है और कार्तिक कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप मे मनातें हैं,,, हनुमान के जन्मकथा के बारें मे एक कथा प्रचलित है जन्म लेते ही हनुमान जी भूखे होने कारण आकाश मंडल मे निकलते हुये सूर्य को लाल फल समझ कर निगल गये, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड मे आंधेरा व्याप्त हो गया, क्रोध मे आकर इन्द्र ने पवनपुत्र के ठोढी पर वज्र चला दिया जिससे उनकी ठोढी टेढ़ी हो गयी तब से उन्हें हनुमान, कहा जाने लगा, वज्र के प्रभाव के कारण बजरंगी बन गये.

अंजनीनन्दन पवनपुत्र हनुमान भगवान श्री  राम  के  अनन्य  भक्त हैं ,  भगवान शिव के 11वें रुद्र हैं,, श्रीराम के परम् अनन्य परम भक्तशिरोमणि परमवीर, महाबलशाली, जितेन्द्रिय केशरीनन्दन हनुमान, निष्कामभाव के अद्वातीय महापुरुष हैं, देवताओं केलिएभी दुर्लभ अष्टसिद्धि और नवनिधि को सहज ही प्राप्त कर लिया, माता लक्ष्मी की कृपादृष्टि के बिना अष्ट सिद्धियाँ और नवनिधि संभव नही हो सकता,,,,  हनुमत साधना से संसार मे सब कुछ प्राप्त किया जा सकता, हनुमान जी अष्टसिद्धि और नव निधि के प्रदाता हैं, अष्टसिद्धि====  [1]अणिमा, लघिमा, महिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, वशित्व, इशित्व  ,  नवनिधियाँ= पद्म,, महापद्म नील, मुकुन्द, नन्द, मकर, कच्छप, शंख, खर्व. जनक नंदनी जानकी जी ने हनुमान जी को आशीर्वाद दियाथा – है पुत्र तुम अजर, अमर गुणों के निधि बने रहोगे, और भगवान श्रीरामचन्द्रजी की कृपा दृष्टि सदैव तुमपर बनी रहे.

सुग्रीव की मित्रता से लेकर भगवान श्रीरामचंद्र के मिलन, सीतकी खोज, समुद्र लघाना, लंका दहन, पातालपुरी से राम लक्ष्मन को ले आना वीर घातनी से लक्ष्मण को जीवित करने हेतु, हिमालय पर्वत से संजीवनी वूटी को लाना, लंका विजयोपरांत अयोध्या मे राम -लक्ष्मण के सकुशल वापसी का  भरत को संदेश आदि, अष्टसिद्धियों के बल पर ही संभव थे,  हनुमान को सिन्दूर लगाये जाने की एक कथा है माता सीता एक बार सिन्दूर लगा रहीं थी, हनुमान ने सिन्दूर लगाने का कारण पूछा उंन्होने पति के दीर्घायू होनी बात कही, तब हनुमान जी अपने प्रभु भगवान की आमरता के सम्पूर्ण शरीर मे सिन्दूर लगा लिये,, भगवान राम ने सिन्दूर लगाने का कारण जानना चाहा तब उंन्होने सहजता से कहा प्रभु आपकी अमरता के लिये ऐसा किया हूँ, भगवान राम खुश होकर आशीर्वाद दिये हे पवनपुत्र जो व्यक्ति आपको सिन्दूर लगायेगा उसे मेरी भी भक्ति और निष्ठा सहज ही प्राप्ति होगी, भगवान राम हनुमान की भक्ति से प्रसन्न होकर बोले हनुमान मय तुमसे प्रसन्न हूँ, जो वर चाहो माँग सकते हो, जो वर देव, दानव, के लिये दुर्लभ होगे वह वर तुम्हें अवश्य दे दूंगा,,, अंजनी नंदन हनुमान भगवान के श्री चरणों गिर बोले प्रभु इस धरा पर जब तक आपका नाम रहे तब तक मेरा शरीर विद्यमान रहे, आपके भक्तों के श्री मुख से रामकथा रूपी अमृत का पान करता रहूं, श्रीराम ने कहा भक्त आपकी मनोकामना पूर्ण हो, जीवन मुक्त चिरन्जीवी होकर इस संसार मे सुख पूर्वक् निवास कीजिये,,, जन मानस की मान्यता है जहां -जहां पर रामकथा का आयोजन होता है हनुमान जी रामकथा का रसास्वादन के लिये सूक्ष्म रूप मे, या वेश बदलकर राम कथा रूपी अमृत का रसपान करते है,,,,

 

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि