ग़ज़ल
जो पास मेरे थे वो बहुत दूर हो गए ।
जिसको भी चाहा हमने वो मगरूर हो गए ।
मुश्किल का दौर था ,वफा का इम्तेहान था
जालिम जमाने से सभी मजबूर हो गए ।
उस संग दिल सनम ने वफ़ा इस कदर किया
जितने हशीन ख्वाब थे जो चूर हो गए ।
यूं तो छुपा के रखता था खुद को जमाने से
उस बेवफा के प्यार में मशहूर हो गए ।
इक अजनवी हमारा हुआ इस कदर से अब
उसके सितम भी अब मुझे मंजूर हो गए ।
— धर्म पाण्डेय