इतिहास

आर्यसमाज द्वारा दलितोद्धार का प्रेरणादायक प्रसंग

श्योराज सिंह बेचैन का जन्म चर्मकार दलित परिवार में हुआ था। बचपन में पिता का साया सर से उठ गया। माता ने दूसरा विवाह कर लिया। सौतेले पिता ने पढ़ने लिखने में रूचि रखने वाले श्योराज की पुस्तकें जला दीं। विषम परिस्थितियों में श्योराज सिंह ने जीवन में अत्यन्त गरीबी को झेलते हुए, मजदूरी करते करते कविताओं की रचना करना आरम्भ किया। आर्यसमाज के भजनोपदेशक उनके छोटे से गांव में उत्तर प्रदेश में प्रचार करने के लिए आते थे। उनके राष्ट्रवादी, समाज कल्याण एवं आध्यात्मिकता का सन्देश देने वाले भजनों से प्रेरणा लेकर श्योराज सिंह ने कवितायेँ लिखना आरम्भ किया।

गांव के एक आर्यसमाजी शास्त्री ने जातिवाद की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठकर उनके पढ़ने लिखने का प्रबंध किया। स्वामी दयानन्द से प्रेरणा लेकर प्रगति की सीढियाँ चढ़ते हुए श्योराज सिंह को आज साहित्य जगत में लेखन के लिए साहित्य भूषण पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है। आप दिल्ली यूनिवर्सिटी में हिंदी विभाग में प्रोफेसर हैं। वाणी प्रकाशन द्वारा आपकी आत्मकथा को प्रकाशित किया गया है।

आर्यसमाज ने अपनी स्थापना से लेकर आज तक न जाने कितने होनहार लोगों का जीवन निर्माण किया हैं। आशा है स्वामी दयानन्द कि यह कल्याणकारी चेतना संसार का इसी प्रकार से कल्याण करती रहे।

श्योराज सिंह बेचैन की संक्षिप्त आत्मकथा को पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर समाचार पत्र के इस लिंक पर जाये

http://www.bhaskar.com/news/RAJ-OTH-MAT-latest-nagar-news-054002-62374-NOR.html
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— डॉ विवेक आर्य

One thought on “आर्यसमाज द्वारा दलितोद्धार का प्रेरणादायक प्रसंग

  • मनमोहन कुमार आर्य

    नमस्ते डॉ. विवेक जी। पूरा लेख पढ़ा। बहुत अच्छा लगा। आर्य समाज में ऐसे सहस्रों बंधू व उनके परिवार हैं जो आर्यसमाज के संपर्क में आकर उन्नत हुवे हैं। ऐसे भी मेरे एक दिवंगत मित्र थे श्री शिवनाथ आर्य। वह व्यवसाय से दरजी थे और उनकी दो बेटियां आर्यसमाज दवारा संचालित आवासीय निःशुल्क संस्था महिला आश्रम, देहरादून में पढ़ी थी। आपके पांच पुत्र हैं। सभी के नामों के साथ आर्य शब्द जुड़ा हुआ है। एक पुत्र श्री सत्यबीर आर्य मेरे साथ फेसबुक पर जुड़े हुवें हैं। परिवार के सभी लोग बहुत आदर करते हैं। आर्यसमाज, तपोवन और गुरकुल के आयोजनों में परिवार सहित भाग लेते हैं। श्री शिवनाथ जैसा गतिशील और महर्षि दयानन्द और आर्यसमाज का दीवाना देहरादून में विगत ४० वर्षों में दूसरा नहीं देखा यद्यपि व अशिक्षित थे।

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