कविता

कुछ छुटपुट रचनाएँ

मुद्दत बाद आज आंसू पोंछ भी रहे हो तो क्या
‘मंजु’ सारी उम्र का तो वादा नहीं किया तुमने

‘मंजु’ कैसा अजूबा है जमाने में
बेवफाई जिनकी फितरत है वो ही हमें
आज वफा का सबक सिखा रहे हैं

सुना है अब्र से आगे भी कोई अजूबी जगह है
वहां अंधेरों में भी रौशनी की वजह है
पता न था ‘मंजु’ फरिश्तों के बीच भी
अब इंसानों जैसी ही कलह है

तन्हाई का आलम ‘मंजु’ इस कदर अपना लगता है
भीड़ होती है ख्यालों की तो बहुत बुरा लगता है

पत्थरों पर वादे तो लिखे तुमने
‘मंजु’ तुम अब उनसे मुकरते क्यों हो

मंजुला रिशी, लंदन

3 thoughts on “कुछ छुटपुट रचनाएँ

  • लीला तिवानी

    अति सुंदर.

  • लीला तिवानी

    अति सुंदर.

  • पता न था ‘मंजु’ फरिश्तों के बीच भी

    अब इंसानों जैसी ही कलह है बहुत सुन्दर शब्द लगे .

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