सामाजिक

बाल श्रम : जागो भारतीय जागो

खेलने कूदने के दिनों में कोई बालक श्रम करने को मजबूर हो जाय तो इससे बडी विडम्बना समाज के लिए हो नहीं सकती । बाल श्रम एक ऐसा सामाजिक अभिशाप है जो शहरो में, गॉव में चारों तरफ मकडजाल की तरह बचपन को अपने आगोश में लिए हुए है । बाल श्रम से परिवारों को आय स्रोतों का केवल एक रेशा प्राप्त होता है जिसके लिए गरीब अपने बच्चों के भविष्य को इस गर्त में झोक देते है ।
सामाजिक विकास का हक पाने का अधिकार प्रत्येक बालक को है । यह जानकर और आश्चर्य होता है कि खनन उद्योग, निर्माण उद्योगों के साथ साथ कृषि क्षेत्र भी ऐसा क्षेत्र है, जहॉं अधिकाधिक बच्चे मजदूरी करते हुए देखे जाते है । इन बच्चों को पगार के रूप में मेहनताना भी आधा दिया जाता है । ऐसा नहीं है कि बाल श्रम के निराकरण के लिए सरकारें चिन्तित न हों, लेकिन यह चिन्ता समाधान में कितनी सहयोगी साबित हुई है । यह मूल्याकंन का विषय है।
क्या ये हमारे देश का भविष्य है ? ये नन्हे नन्हे हाथ जिन में किताबें और पैंसिल होनी चाहिये उन हाथों में ये ईंटे , ये क्या मज़दूरी करने की उम्र है इस बालक की, क्या देश में कोई नियम या कानून नहीं या फिर सब रिश्वत के हाथों बिक गयें हैं , क्या माँ बाप का यही कर्तव्य है , क्या कोई नही जो इन बच्चो के भविष्य का सोचे।
हम यह भूल जाते है कि सब कुछ कानूनों एवं सजा से सुधार हो जायेगा लेकिन यह असम्भव है । हमारे घरों में, ढावों मे, होटलों में अनेक बाल मजदूर मिल जायेंगे, जो कडाके की ठण्ड या तपती धूप की परवाह किये वगैर काम करते है। लेबर आफिस या रेलवे स्टेशन के बाहर इन कार्यालयों में चाय पहुचाने का काम यह छोटे छोटे हाथ ही करते है और मालिक की गालियॉ भी खाते है । सभ्य होते समाज में यह अभिषाप क्यों बरकरार है, क्यों तथाकथित अच्छे परिवारों में नौकरों के रूप में छोटे बच्चों को पसन्द किया जाता है । आप यह अक्सर पायेंगे कि आर्थिक रूप से सशक्त होती हुई महिला को अपने बच्चें खिलाने एवं घर के कामकाज हेतु गरीब एवं गॉव के बाल श्रमिक ही पसन्द आते है । इन छोटे श्रमिकों की मजबूरी समझिए कि इनके छोटे छोटे कंधों पर बिखरे हुए परिवारों के बडे बोझ है ।
ये सब सवाल क्या आपके मन में नहीं उठते इस बालक को ऐसे काम करते देख कर , दिल रोता है ये सब देख कर, विदेशों में कानून है कि बच्चे को कम से कम माध्यमिक स्कूल ज़रूर पास करवाना होता है वरना उन्हे कानून सज ा देता है, कानून हमारे देश में भी है लेकिन उसके रखवाले बिके हुये हैं तभी गरीब मज़दूर बच्चो की ऐसी हालत है।
मैं तो यही कहना चाहती हूँ सबसे की रोको ये सब , जब कोई भी ऐसा अन्याय होते देखे तो वहीं कानून की सहायता से ये सब रोक दिया जाये, इस के लिये सब के विकेक का जागना बहुत ज़रूरी है, सब देख कर आगे बड़ जातें हैं क्योंकि कोई भी पुलिस के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता, सब को शायद आदत सी हो गयी ये सब सड़कों पर देखने की, कोई इन बच्चों का दर्द समझना ही नही चाहता वरना ये सब कभी नहीं होता या कब का रूक चुका होता
रोको बाल श्रम को, जागो भारतीय जागो!
रमा शर्मा
कोबे, जापान

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'

One thought on “बाल श्रम : जागो भारतीय जागो

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख !

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