श्रमिक दिवस
1 मई यानी श्रमिक दिवस पर विशेष
अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस को अंतरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस और मई दिवस के नाम से भी जाना जाता है, जो अंतरराष्ट्रीय श्रमिक संघ को प्रचारित और बढ़ावा देने के लिये अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता है. इसे पूरे विश्व भर में 1 मई को मनाया जाता है. आठ घंटे के कार्य-दिवस की जरुरत को बढ़ावा देने के लिये साथ ही संघर्ष को खत्म करने के लिये अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस या मई दिवस मनाया जाता है. पूर्व में मजदूरों की कार्य करने की स्थिति बहुत ही कष्टदायक थी और असुरक्षित परिस्थिति में भी 10 से 16 घंटे की कार्य-दिवस था. 1860 के दशक के दौरान मजदूरों के लिये कार्यस्थल पर मृत्यु, चोट लगना और दूसरी डरावनी परिस्थिति बेहद आम बात थी और पूरे कार्य-दिवस के दौरान काम करने वाले लोग बहुत क्षुब्ध थे, जब तक कि आठ घंटे का कार्य-दिवस घोषित नहीं कर दिया गया. हरकीरत ‘ हीर’ की लिखी कविता का एक अंश देखिए-
”वह आता है
सड़कों पर ठेले में
बोरियां लादे
भरी दोपहर और तेज धूप में
पसीने से तर -बतर
जलती है देह
ठेले पर नहीं है पानी से भरी
कोई बोतल …..”
श्रमिक के महत्त्व को समझने के लिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए, कि हम जिस सड़क पर चल रहे हैं, जिस घर में रह रहे हैं, जिस मशीन के सहारे आसान जीवन जी रहे हैं, जिन बर्तनों-कपड़ों-चीज़ों आदि का प्रयोग कर रहे हैं, उनमें श्रमिक का खून-पसीना सम्मिलित है-
”सृजन करता आ रहा है , वह सभी के वास्ते
चीर कर चट्टान को , उसने बनाये रास्ते.”
हम विकास के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं, यह श्रमिक की सहायता के बिना संभव ही नहीं है-
”सेतु , नहरें , बांध उसके श्रम से ही साकार हैं
देश की सम्पन्नता का ,बस वही आधार है.”
ऐसे में हमें श्रमिक दिवस पर श्रमिक के योगदान को याद करना नहीं भूलना चाहिए. हर छोटे-बड़े कामगार की हर छोटी-बड़ी समस्या पर ध्यान केंद्रित करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 1 मई यानी मजदूर दिवस का दिन आर्थिक तंगी के शिकार हज़ारों लोगों के साथ बिताएंगे और उनकी ज़िंदगी में खुशहाली लाने के लिए कई सौगात भी देंगे. इस समारोह में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली महिलाओं को मुफ्त में एक सिलिंडर, रेग्युलेटर व पाइप दिया जाएगा. पीएम बलिया से लेकर बनारस तक रोजी-रोटी के लिए जूझने वाली मेहनतकश कौम के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए 7 घंटे का समय देंगे.
गुरुवार को आए प्रधानमंत्री के प्रोटोकॉल के अनुसार वह बलिया में 1 घंटे का समय गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली महिलाओं को फ्री एलपीजी की सौगात देकर उज्जवला योजना का राष्ट्रीय लोकार्पण करने के साथ करेंगे. बलिया के बाद अपने संसदीय क्षेत्र बनारस में साढ़े 6 घंटे से ज्यादा का समय बिताएंगे. पीएम बनारस में एक हज़ार से ज्यादा मेहनतकश रिक्शा चालकों को पैडल रिक्शा की जगह ई-रिक्शा भेंट करेंगे और अस्सीघाट पर बैटरी चलित 11 ई-बोट भी नाविकों को देंगे.
चलिए अब हम आपको दो खुशकिस्मत मजदूरों से मिलवा रहे हैं. पहले खुशकिस्मत हैं लखपति बनने बनने वाले पोन्नैया, जो उपनगर वेल्लरडा में रहते थे. एक लॉटरी के निकाले गए ड्रॉ में उन्होंने सरकारी लॉटरी ‘अक्षय’ का 65 लाख का जैकपाट और 90 हजार रुपये का सांत्वना पुरस्कार जीता. पोन्नैया पहले राजगीर थे, लेकिन हादसे में पैर गंवाने के बाद वह पत्नी और तीन बच्चों की देखभाल करने के लिए भीख मांगने लगे. वेल्लरडा पुलिस के अनुसार, वे इलाके में भीख मांगते थे और बैंक के माध्यम से पैसे अपने परिवार को भेजते थे. उन्हीं रुपयों में से बचाकर वे अक्सर लॉटरी खरीदते थे. एसआइ डीएस कुमार ने बताया, टिकट बेचने वाले ने उन्हें खोजकर यह खुशखबरी दी और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखते हुए थाने तक पहुंचाया.’ इसी तरह पिछले महीने पश्चिम बंगाल से आए 22 साल के एक मजदूर की दो करोड़ रुपये की लॉटरी लगी थी. श्रमिकों की महत्ता को न भूलना हमारा कर्त्तव्य है. हमें याद रखना चाहिए, कि वैज्ञानिक खोज के बाद एक-एक उपकरण में श्रमिक का हाथ होता है, तभी वह हम तक पहुंचता है.
नमस्ते बहिन जी। इस ह्रदय को छूने वाली सूंदर रचना के लिए धन्यवाद। मुझे एक श्रमिक विषयक घटना याद आ गई। मैं अपनी पुत्री को एक बार तेज गर्मी के दिनों में दिल्ली के एक स्कूल में बैंक की परीक्षा दिलाने ले गया था। स्कूल के गेट पर एक रिक्शा आकर रुका था। चालक पसीने से तर बतर था। युवक सवार ने कुछ पैसे दिए, रिक्शा वाले ने कहा यह कम है और दीजिये। वह युवक उन्ही को लेने की जिद कर रहा था। तब रिक्शा वाले ने कहा कि आपको जगह का ठीक पता न होने के कारण मुझे इधर उधर रिक्शा ले जाना पड़ा। पैसे न देने पर उस रिक्शा चालक ने जो शब्द कहे थे वह मुझे आज भी याद हैं। उसने कहा था कि यह पेट्रोल का रिक्शा नहीं है। यह हमारे खून से चलता है जो पसीना बन कर बह रहा है। यह कह कर उसने पैसे लौटा दिए थे। मुझे यह देखकर क्रोध आ गया था। मैंने युवक को डांटा परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। इस रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अक्सर ऐसी बातों में हम लोग बहुत ज़्यादती कर जाते हैं. यों दिखावे के लिए कई हज़ार लुटा देंगे, लेकिन असली हकदार को एक-दो रुपए अधिक देना भी हमें गवारा नहीं होता. ऐसा लगता है, जैसे उसकी जीत हो जाएगी, हमारी हार. अगर हम ये शब्द याद रखें, कि ”हम जिस सड़क पर चल रहे हैं, जिस घर में रह रहे हैं, जिस मशीन के सहारे आसान जीवन जी रहे हैं, जिन बर्तनों-कपड़ों-चीज़ों आदि का प्रयोग कर रहे हैं, उनमें श्रमिक का खून-पसीना सम्मिलित है” तो ये जीत-हार बेमानी लगने लगेगी. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
प्रिय मनमोहन भाई जी, अक्सर ऐसी बातों में हम लोग बहुत ज़्यादती कर जाते हैं. यों दिखावे के लिए कई हज़ार लुटा देंगे, लेकिन असली हकदार को एक-दो रुपए अधिक देना भी हमें गवारा नहीं होता. ऐसा लगता है, जैसे उसकी जीत हो जाएगी, हमारी हार. अगर हम ये शब्द याद रखें, कि ”हम जिस सड़क पर चल रहे हैं, जिस घर में रह रहे हैं, जिस मशीन के सहारे आसान जीवन जी रहे हैं, जिन बर्तनों-कपड़ों-चीज़ों आदि का प्रयोग कर रहे हैं, उनमें श्रमिक का खून-पसीना सम्मिलित है” तो ये जीत-हार बेमानी लगने लगेगी. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
सार्थक सामयिक लेखन
सार्थक सामयिक लेखन
प्रिय सखी विभा जी, आपकी प्रेरक व सार्थक प्रतिक्रिया हमारा संबल होती है.
लीला बहन , आप को और सारे जगत को may day की वधाई हो . बहुत साल पहले हमारे गियानी जी के साथ चर्चा करते समय मैंने एक सवाल पूछा था कि मैं बस्सों में काम कर रहा हूँ और आप फैक्ट्री में काम कर रहे हैं ,जब कि हमारे एक साथी बिजनैस मैन बन गए, कभी कभी मुझ में घट्यापन आ जाता है, गियानी जी हंस पड़े और बोले, गुरमेल ! मैं तुम से एक सवाल पूछता हूँ कि अगर तेरी कार का टायेर पंक्चर हो जाए तो तू कहाँ जाएगा ,अगर सब्जी की जरुरत पढ़ जाए तो कहाँ जाएगा ,लंडन को जाना पढ़ जाए तो ट्रेन या कोच में ही जाएगा ना ! तो ट्रेन कौन चलाएगा , बस संसार इसी तरह चलता है ,हम सब कुछ ना कुछ हिस्सा डाल रहे हैं ,कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता . एक आदमी बहुत बड़ा बिजनैस मैन है और कल को वोह बैंक्र्प्त हो गिया तो यह उस की किस्मत है .
इस में एक बात है कि हर एक को उस का पूरा हक्क मिलना चाहिए और उस को डाऊन ग्रेड नहीं करना चाहिए . यही मे डे का असली मकसद है .
लीला बहन , आप को और सारे जगत को may day की वधाई हो . बहुत साल पहले हमारे गियानी जी के साथ चर्चा करते समय मैंने एक सवाल पूछा था कि मैं बस्सों में काम कर रहा हूँ और आप फैक्ट्री में काम कर रहे हैं ,जब कि हमारे एक साथी बिजनैस मैन बन गए, कभी कभी मुझ में घट्यापन आ जाता है, गियानी जी हंस पड़े और बोले, गुरमेल ! मैं तुम से एक सवाल पूछता हूँ कि अगर तेरी कार का टायेर पंक्चर हो जाए तो तू कहाँ जाएगा ,अगर सब्जी की जरुरत पढ़ जाए तो कहाँ जाएगा ,लंडन को जाना पढ़ जाए तो ट्रेन या कोच में ही जाएगा ना ! तो ट्रेन कौन चलाएगा , बस संसार इसी तरह चलता है ,हम सब कुछ ना कुछ हिस्सा डाल रहे हैं ,कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता . एक आदमी बहुत बड़ा बिजनैस मैन है और कल को वोह बैंक्र्प्त हो गिया तो यह उस की किस्मत है .
इस में एक बात है कि हर एक को उस का पूरा हक्क मिलना चाहिए और उस को डाऊन ग्रेड नहीं करना चाहिए . यही मे डे का असली मकसद है .
_/_ सहमत हूँ
प्रिय सखी विभा जी, सहमत होने से अपने अंतर्मन को संबल मिलता है, ऐसा हमारा मानना है.
_/_ सहमत हूँ
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर आनंद आ जाता है. आपको याद होगा, कि प्रतिक्रिया के ज़रिए ही हमारी मुलाकात हुई थी, जो प्रभु कृपा से अब तक जारी है. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है, श्रमिक हैं, तो हम हैं. ज्ञानी जी का कथन सत्य है, कि सबके काम का अपना-अपना महत्त्व है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.