कविता : हिंदी हुई अपने देश में पराई
कितने शब्द बिखरे पड़े चारो और ….
लेकिन सब उलझे हुऐ,
किसी शब्द का अर्थ नहीं , तो
कही किसी की मात्रा गुम है !
सुना है …..
ये शब्द ही अपने , पराये की पहचान करा देते है
रिश्तों की , प्यार की पहचान करा देते है
लेकिन ,
मुझे तो हर शब्द आज थका लग रहा है
छटपटा रहा है अपने आप से
शायद ये शब्द अपनी अहमियत खोते जा रहे है
इसलिए पराये होते जा रहे है !!
— डॉली अग्रवाल