कविता

कैसी रीत है जग की…

हाय!
यह कैसी रीत है जग की
गुनाहगार मस्ती में घुम रहें
बेगुनाहगार सजा भुगत रहें
जिसे समझते हो तुम अपना
वही पीठ में खंजर मार रहें|
हाय!
यह कैसी…..
देखने से लगते है भले
लेकिन वो होते है बहुत नुकिले
जैसे उनको नुक्सा मिले
जल्दी से तुम्हे फसा ही देते |
हाय!
यह कैसी ………
कैसे इतना गिर सकती है ईंसानियत
जो यह करते है हैवानियत
वे ईंसान होते ही नही
या उनकी गिर गयी है मानसिकताये|
हाय!
यह कैसी…….
लगता उन्हे किसी ने संस्कार नही दिया
या फिर मॉ -बाप का साथ नही मिला
चन्द खुशियों के खातीर ही
खो देते है अपनी परछाइयॉ|
हाय!
यह कैसी………
कब तक ऐसे करते रहेंगे
लोगो को सताते रहेंगे
ये कथन लगता भूल गयें है
सत्य परेशान होता है
लेकिन पराजित नही|
हाय!
यह कैसी…….
कर लो  जितना करना हैं शैतानियॉ
भेडियों से क्या डरना यहॉ है शेरनियॉ
तेरा अहंकार टुटते देर नही
चन्द मिनटो मे उडने लगेंगी हवाईयॉ|
     निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४