कविता

क्यो पूछते हो मुझसें…

क्यो पुछते हो मुझसे
मेरी हालातो के विषय में
जब तुम्हे सुन कर
चुप ही हो जाना है
इससे बेहतर की तुम
पुछते ही नही
झेलने देते मुझे परेशानियॉ
नही चाहियें साथ किसी का
जब अकेले ही लडना है
अपनी लडाईयॉ
ये रिश्ते नाते को भी
झुठलाना था तो
क्यो कियें मेरे से दोस्तीयॉ
मेरा सुनने का समय कहॉ
अपना ही सुनाने लगते हो कहॉनियॉ
सह लूँगी मैं सभी परेशानियॉ
काट लूँगी तन्हाईयॉ
पी लूँगी गमों को
दिल में दर्द को छुपा लूँगी
लेकिन लबो पर हँसी
बरकरार रखूँगी
ताकि कोई कह न सके
बहुत हँसा करती थी
आज क्यो मुरझाई हुयी हैं|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४