आज बैठ गयी हूँ लिखनें.
आज बैठ गयी हूँ लिखने
कुछ कविता कुछ कहानी
नही मिलते शब्द
तो क्या लिखूँ बात पुरानी
प्यार की भाषा लिखूँ
या नफरत की तान
दोनो मिलकर लिखूँ
तो हो जायेंगे बेजान
लेकिन आज प्यार की जगह
फैला हैं नफरत ही नफरत
अपने कलमो के सहारे ही
मिटाना चाहती हूँ यें शब्द
जन-जन में भरना चाहती हूँ
प्यार की नयी किरण
हो सदा आलोकित ये जग
प्यार के ले नयी उमंग
आज बैठ गयी हूँ लिखने|
निवेदिता चतुर्वेदी
प्रिय सखी निवेदिता जी, अति सुंदर अभिव्यक्ति.
प्रिय सखी निवेदिता जी, अति सुंदर अभिव्यक्ति.