ग़ज़ल
वो लोग ही थे मुझको अपना जताने वाले
जो गुनाहगार हुए थे मुझको मिटाने वाले !!
भटका तो था पर और भटकाया गया मैं
तेरे शहर मे नहीं मिले रास्ता बताने वाले !!
घाव भी मरहमो को तरसते रह गये यहाँ
अक्सर मिलते हैं यहाँ सभी जलाने वाले !!
चंदन भी शुकुन देता सापो से लिपटकर
इन्सा नही मिलते इन्सा से निभाने वाले !!
बेख़बर रश्मे कसमे प्यार भी निभाना है
ये छोटी उम्र क्यों दे दी मुझे बनाने वाले !!
— बेख़बर देहलवी