कविता : नश्वरता
नश्वरता …
न करती प्रतीक्षा,
न मुड़ती, देखती पीछे|
क्षीण बड़ी ही
लहरों की आयू|
पल भर का बचपन,
क्षणभर जवानी,
बुढ़ापा भी होता क्षणिक!
शारीरिक क्षमता,
पल भर का पैसा
यहीं कमाता और
यहाँ ही धरता |
फिर क्यूँ अभिमान
ये इंसान करता?
— डॉ पूनम माटिया
बस यही इंसान की कमजोरी है . मुझे याद है मेरे ताऊ जी मेरे पिता जी की मृतु पर बहुत खुश थे और उन्होंने इस ख़ुशी में रज के शराब पी थी लेकिन इस के चार दिन बाद वोह खुद मर गए .
@@bhamra:disqus जी कई प्रश्न खड़े कर दिए आपके कमेन्ट ने … बड़ा भाई छोटे भाई की मृत्यु पर ख़ुश ?
शराब पीने से चार दिन में मृत्यु ?????
पर हाँ यह इंसान की कमज़ोरी तो है …अपने अलावा वो सब को नश्वर समझता है ….धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए
पूनम जी , हंकार काहे का, जाना तो एक दिन सब ने है . हम मिआं बीवी अक्सर यह बातें करते रहते हैं की लोग खामखाह किओं एक दुसरे से नफरत करते हैं . हम मिआं बीवी ने तो अपने लिए अपने फ़िऊन्रल का भी पहले से इंतजाम कर रखा है ताकि बच्चों को हमारे मरने के बाद कोई खर्च ना करना पड़े बच्चे बेछ्क बहुत अछे हैं लेकिन जाना तो एक दिन है ही .इस हफ्ते ही हम दोनों ने साढ़े आठ हज़ार पाऊंड का चैक भेजा है इंशोरेंस वालों को और उन का इमेल भी आ गिया है . यहाँ मरना भी कॉस्टली है लेकिन मरना तो यहीं ही है ,फिर रोना किस बात का . इस में यह बात भी नहीं है की हम पैसीमिस्ट हैं ,७३ का हूँ और अभी कमजकम बीस साल और जीने की इच्छा रखता हूँ . आप की छोटी सी कविता ने मन को छू लिया और मुझे यह सब लिखने को मजबूर कर दिया .
@@bhamra:disqus ji … धन्यवाद ……मुझे ये एहसास दिलाने के लिए कि मेरे शब्द आप के दिल तक पहुँचने में सफल हुए …और जहाँ तक बात है छोटी सी कविता की ..तो मैं अक्सर कुछ ही पंक्तियों में अपनी बात कहती हूँ …. अधिक पढ़ने का समय भी किसके पास है 🙂
आप ने बहुत अच्छा किया जो बच्चों पर पैसे की जिम्मेदारी नहीं छोड़ी .. आप कहीं लन्दन में होंगे … ऐसा लगा आपकी बातों से .
73 के होने के बाद भी ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैया देख कर अच्छा लगा …… बात होती रहेगी ..धन्यवाद
अभिमान करना मुर्खता
हर साल रावण जलता
मानव तब भी नहीं सीखता
@@yuva-9dfcd5e558dfa04aaf37f137a1d9d3e5:disqus जी हाँ अभिमान करता है इंसान .जबकि भली भांति जानता है कि कुछ भी तो अपना नहीं है
धन्यवाद आपकी प्रतिक्रिया के लिए