खूरच रहा हूँ
खूरच रहा हूँ
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शायद चार दिवारों से घिर कर
बन जाता हो घर किन्तु
बस इतना काफी तो नही होता
आशियाने को बसाने के लिए
याद है मुझे तेरे आने के पहले
चांदनी चौक से लेकर आया था
एक गैस का चुल्हा और
एक स्टील वाला चिमटा
हाँ तुमने कहाँ था बिना चिमटा तुम
सेक नही सकती रोटियाँ
एक छोटा पूजा घर
जो यूँ ही अव्यवस्थित पड़ा था
लेकर आया था मै
माता के संग
कुछ और देवताओं की तस्वीरें
और तेरे आने के बाद
बिग बाजार से कुछ फूलदार
किचेन में समान रखने वाले
फलावर्स के ब्रांडेड डिब्बे
तुमने आते ही बदले थे
ड्राइंग रूप में रखे बेंत वाली कुर्सी
और सेन्टर टेबल का कवर
सफेद चादरों का सेट भी तो हम
लेकर आये थे गोरिया हाट से
तुझे पसंद है
हर खिड़की मे सिल्क वाले पर्दे
जो बहुत मशक्कत के बाद हम
बड़ा बाजार में ढूँढ पाए थे
एक लाल चुंदरी का
अलग पर्दा भी तो सिलवाया था
जो बाटती है
डाइनिंग रूम को ड्राइंग रूम से
और याद है ना वो
रबर वाला कमल का फूल
जो तैर सकता है पानी में
जिसे हमने सजा रखा है अपने
सीसे वाले डाइनिंग टेबल पर
बस तेरे साथ चलते चलते
ना जाने यह चाहरदिवारी
कब घर में तब्दील हो गयी
और मै खानाबदोश से आदमी
पता भी नही चला
पर आज पाँच साल बाद
मकान मालिक का फरमान आया है
बस दो हफ्ते में करना है खाली मकान
क्या कहूँ उनसे , कहते है
किरायदार से मकान का रिश्ता
बस किराए तक का होता है
तो बस ढूँढ लिया है नयी छत
और खूरच रहा हूँ दिवारों से यादें
गठरी में समेट लेने को
कि पीठ पर लाद कर ले जा सकूँ
बसाने को एक और घर
किसी और के अगले फरमान तक
अमित कु अम्बष्ट ” आमिली”