कविता : मैं बेटी बनकर आई हूँ
मैं बेटी बनकर आई हूँ
खुशियाँ ही खुशियाँ लाई हूँ,
जन्मों जन्मों के रिश्तों को,
मैं यहाँ निभाने आई हूँ,
मैंने तुम्हें चुना है लाखों में,
पापा तुम बड़े निराले हो,
तुम इक बेटी के बाप बने,
पापा तुम किस्मतवाले हो,
हम नन्ही नन्ही गुड़िया सब,
जन्नत की परियां होती हैं,
भगवान बहुत खुश होते जब,
तब बेटी पैदा होती है,
तुम शाम को जब घर आओगे,
और मुझे खेलता पाओगे,
मैं दौड़ के मिलने आऊंगी,
तुम ताजा दम हो जाओगे,
समय पे घर आ जाना तुम,
चाहे कुछ भी ना लाना तुम,
नहीं खेल खिलौनों का कोई चाह,
बस मुझको बहुत पढ़ाना तुम,
शिक्षा ही सर्वोत्तम धन है,
मुझे अच्छी शिक्षा देना तुम,
दुनिया की बातों पर पापा,
बिल्कुल भी ध्यान ना देना तुम,
मुझको भी हक है पढ़ने का,
जीवन में आगे बढ़ने का,
मैंने भी सपना देखा है,
नए क्षितिजों को गढ़ने का,
मुझे आसमान को छूना है,
इतनी सी मेरी ख्वाहिश है,
मेरे पापा तुम सुन लो तुमसे,
बस इतनी मेरी गुजारिश है,
पिता हो तुम इक लड़की के,
ये सोच कभी ना डरना तुम,
मुझमें और मेरे भाई में,
कभी भेदभाव ना करना तुम,
बस इतनी मेरी गुजारिश है,
मुझमें और मेरे भाई में,
कभी भेदभाव ना करना तुम……
— भरत मल्होत्रा
बहुत अच्छी कविता !
सुंदर रचना