अनबूझ पहेली
मैं अनबूझ पहेली हूँ
खुद की ही सहेली हूँ
होते हैं सभी संग मेरे
लाखों में भी अकेली हूँ
तेरी यादों को बुनती
हर लम्हे को चुनती
नहीं तूने साथ दिया
ये सोच के हू घुनती ।
जब तुझको बुलाती हूँ
मैं खुद को भुलाती हूँ
तू फिर सपनों में आएगा
यू खुदको बहलाती हूँ ।
एक बार तुम आ जाओ
कुछ ख्वाब सजा जाओ
मुझे बाँहो में भरकर
एक आस जगा जाओ ।
तुझे देर हो गयी तो
मैं राहो में खो गयी तो
मुझे ढूंढ ना पाओगे
मौत के पहलू में जो गयी तो ।
अब भी समय है बाकी
मैं नहीं हूँ तेरी साकी
ये जो जाम गिर गया तो
पछतावा ही है बाकी ।
तू ही आरजू है मेरी
तू हर खुशी है मेरी
जाना है दूर तू जा
मोहब्बत तू है मेरी ।
— अनुपमा दीक्षित मयंक