मना लो जश्न अभी आज ही
गीत कोई अच्छा सुनने को मिले, तो झूम लेती हूं
अच्छी-सी कोई धुन कानों में पड़ जाए, तो ठुमका लगा लेती हूं
साज़ कोई सुरीला मिले, तो बजा लेती हूं
हंसने का कोई बहाना मिले, तो हंस लेती हूं
खुश होने का कोई बहाना न मिले, तो यों ही खुश हो लेती हूं
छोटी-सा ही सही पर खुशियां मनाने का बहाना मिले तो
मना लो जश्न अभी आज ही, न जाने कल मनाने का अवसर मिले-न-मिले.
जीवन के यथार्थ को उद्घाटित करती सुन्दर रचना
प्रिय अर्जुन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
नमस्ते एवं धन्यवाद बहिन जी। कविता अच्छी है। मुझे जब जश्न मनाना पड़े तो वह किसी नई आध्यात्मिक पुस्तक का अध्ययन व ईश्वर की भक्ति का गीत सुनना होता है। सब चीजों का अपना अपना आनंद है परन्तु भजन का आनंद सुनकर व गाने से तो मिलता ही है मेरे विचार से यह संस्कारों के रूप में साथ में भी जाता है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लीला बहन , कविता बहुत अछि लगी . बिलकुल दरुसत है किः यही पल है जश्न मनाने का ,क्या मालूम कल हों ना हों .आज शाम को तो हम भी जश्न मना लेंगे क्योंकि बिटिया अपने परिवार के साथ आ रही है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, जश्न मनाइए, अवश्य मनाइए, जी भरकर मनाइए. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.