अपना-अपना नज़रिया
बेटा खाना खाकर जूठी थाली रखने रसोईघर में आया. तभी उसकी नज़र दो चींटों पर गई. मां से बोला, :” ममी ममी, देखो छोटे चींटे ने बड़े चींटे की टांग पकड ली है और उसे घसीटकर ले जा रहा है, मज़ा आ गया.” मां बोली, ” बेटा, ऐसी बात नहीं है. बड़ा चींटा अपने बेबी चींटे को सुरक्षित जगह पर ले जा रहा है.” बेटा न जाने क्या सोचता हुआ रसोईघर से बाहर चला गया. शायद मां की ममता और संतान के अनुपम-अनोखे-सलोने प्यार भरे रिश्ते पर, जिस पर केवल एक मां की ही नज़र जा सकती है.
बहुत सुन्दर भाव . बधाई आदरनीय .
प्रिय ओमप्रकाश भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लघु कथा अच्छी लगी. नमस्ते एवं धन्यवाद बहिन जी।
प्रिय मनमोहन भाई जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बढियां
प्रिय सखी नीतू जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय सखी नीतू जी, अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
लघु कथा बहुत अछि लगी . माँ की ममता का पता इन जानवरों से ही चल जाता है कि यह अपने बच्चे के कितना नज़दीक होतें हैं ,हमारी माएं तो फिर भी इंसान हैं . इस का कारण शायद यह ही हो कि बचा माँ के शरीर का ही हिस्सा होता है , और बच्चे को चोट पहुंचे तो वोह सीधी माँ को पहुँचती है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, मां तो बस मां ही होती है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय गुरमैल भाई जी, मां तो बस मां ही होती है. अति सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.