गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

चला है आज ये अंधड़ शज़र को तोड़ डालेगा

कहीं कोई हुआ बेघर सफ़र को मोड़ डालेगा

 

किसी इंसान की फितरत नही कोई बदल सकता

अगर खुद पे हो काबू तो बुराई छोड़ डालेगा

 

समझ कर शान अपनी जो लगाया जाम होठों से,

ग़रीबों को ग़रीबी का ये खंजर तोड़ डालेगा

 

मुकद्दर आजमाने में गुजारी ज़िन्दगी सारी

मुहब्बत नाम का पंछी  हमें झंझोड़ डालेगा।

 

उजालों को किया बन्दी अँधेरों की सियासत ने

सवेरे क्रांति का सूरज तमस को फोड़ डालेगा।

__________गुंजन अग्रवाल “गूँज”

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*