कविता : साया
आज सड़क पर देखा
एक अकेला साया
चला जा रहा था
चुप चाप
अपने में खोया सा
मैंने धयान से देखा
कुछ जाना पहचाना सा लगा
कुछ उदास सा
अपने में गुम
बस चला जा रहा था
मै कुछ आगे बड़ी
वो भी आगे बड गया
मै कुछ तेज़ चली
उसकी चाल भी तेज़ हो गयी
मै पीछे दौड़ी
वो भी भागने लगा
धीरे धीरे पास गयी
वो भी धीरे हो गया
पास जाकर देखा
अरे ये तो !!
मेरा साया है
एकदम तनहा सा
चुप चाप
बस चला जा रहा था
मै भी
चुप चाप
उसके साथ चल पड़ी
लेकिन ये क्या
उसने मुड़कर भी नहीं देखा
कुछ बोला भी नहीं
बस उसी तरह
चुप चाप चलता रहा
मेरे आंसू निकल आये
कुछ समझ नहीं आया
की क्या करूं
कैसे इसका साथ दूं
तभी
एक रौशनी की किरण सी आई
और वो साया
मुझमे में समां गया
और अब मै
उसी की तरह तनहा हो गई
— रमा शर्मा
कोबे, जापान