दोहे : मौसम हुआ खराब
नभ में बादल छा गये, मौसम हुआ खराब।
इतना भी मत बरसियो, मुरझा जाये गुलाब।।
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जल्दी-जल्दी जगत में, अब आते भूचाल।
पर्वत पर बरसात से, हाल हुआ बेहाल।।
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आसमान को छू रहे, लकड़ी के अब भाव।
शीत भगाने के लिए, कैसे जलें अलाव।।
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आबादी नित बढ़ रही, घटते जाते खेत।
समय-समय पर इसलिए, कुदरत करे सचेत।।
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मूँगफली के हो गये, मेवा जितने भाव।
चना-चबेना का हुआ, अब तो बहुत अभाव।।
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प्रजातन्त्र में हो गयी, जनता तो कंगाल।
जनसेवक ही हो रहे, अब तो मालामाल।।
— डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
सुंदर सुंदर दोहा आदरणीय _/_