लेखसामाजिक

~कुछ मन की~

फेशबुक पर जब रूबी राय का मजाक उड़ाती पोस्टों पर जब नजर जाती हैं एक टीस सी होती दिल में | रूबी राय का मजाक उड़ाने वाले हो सकता हैं खुद ही रूबी राय ही रहें हो | न पूरा सही अंशमात्र ही सही | घर में भी झांकिएँ रूबी राय का थोड़ा बहुत अंश दिखेगा | हम खुद ही रूबी राय की तरह पोडिकल साइंस वाले है | न जाने कितने शब्दों का उच्चारण गलत करते | इंग्लिश तो इंग्लिश हिंदी की भी लुटिया बखूबी डुबोते| लिखने में भी हिंदी शब्द को कितना गलत लिखते ये हमें यही पर पता चला , जब कईयों ने शब्दों के लिए टोका | हमारे ‘दिमाक को दिमाग’ करने में प्रभाकर भैया के साथ और कई लोग जुटें रहें | श्रवण भैया, विजय सिंघल भैया,मुकेश कुमार पांड्या भैया ने बहुत मदद की | विनीता सुरेना सखी और दीपिका द्विवेदी दी और भी कई नाम हैं जिनका योगदान कम न हमारी रचना के परिमार्जन में | हाँ ये बात और है कि हम नकल नहीं करें कभी | शायद इसी लिए टॉपर भी न रहें | सामान्य विद्यार्थी थे और पढ़ना छोड़ा तो दिमाग में भी भूसा भरता गया | प्रश्नपत्र हल करके घर आते तो कोई एक भी प्रश्न का उत्तर पूछ लेता तो हमें नहीं आता था| अंशमात्र भी न याद रहता कि उत्तर-पुस्तिका में लिखे क्या हैं |

इन दिनों समाचार पत्र में पढ़े की कई शिक्षकों को प्रार्थनापत्र लिखना नहीं आया | बहुत सी गल्तियाँ की उन्होंने, तो लगा जब ‘राजगीर ऐसा तो मकान फिर कैसा’ | इन शिक्षकों की भी शिक्षा शायद ऐसे ही किसी शिक्षक के द्वारा पूर्ण हुई होगीं | मोटी रकम भर शिक्षक की कुर्सी मिली होगीं| फिर उस कुर्सी को खाली रखने के लिए आधी रकम संस्थापक के जेब में भरी होगीं | खरीदना-बेचना जब तक होता रहेगा ऐसे ही बच्चें निकलते रहेंगे | हजारों क्या लाखों ऐसे ही बच्चें कुर्सी की शोभा बढ़ा रहें और आगे भी बढ़ाते रहेंगे | आरक्षण ने तो सोने पे सुहागा किया हुआ हैं | देश को चलाने में तो अग्रणी है ऐसे ही बच्चें | देश का राष्ट्रीय गान व गीत नहीं जिन्हें पता वो देश चला रहें |

खैर ये तो सरकारी स्कूल के बच्चों की बात हुई | कान्वेंट में पढ़े बच्चें भी फर्राटे से भले इंग्लिश बोल ले पर हिंदी में तो उनकी भी नानी मरती | इंटर का बच्चा भी इतनी लिखने में गल्तियाँ करता जितनी सरकारी स्कूल के पांचवी-छटवी के बच्चें करतें | दिमाग में एक बात घुमड़ रहीं कि ऐसे बच्चों की काँपी मेरे ससुर श्री राधेश्याम मिश्रा के हाथ लगती होगीं तो उसका क्या होता होंगा| इतने मग्न हो काँपी जांचते थे , एक-एक शब्द पढ़| ज्यादातर तो शुरू-अंत पढ़ नम्बर दे देते हैं शायद | जैसे चल रहा चलने दो | यदि कोई माता-पिता शिकायत करें भी तो टीचर हाथ खड़े कर देता | हर का रटा -रटाया जबाब, हमारे क्लास में ५० विद्यार्थी ,ऐसे एक-एक को हम नहीं सिखा सकते | माता-पिता भी मजबूर , पढ़ाना तो हैं ही अतः मुहं पर पट्टी बांध लेता | इमेज भी बनाएं रखनी आखिर नामी-गिरामी स्कूल का लेबल जो लगता | कोई खडूस टाइप का हो तो कह दें, ‘इतनी फ़ीस फिर किस बात की भई’ |

देखा जाय तो हमारे दिमाग के नींव में ही ये बात बैठा दी जाती हैं कि सब चलता हैं | देखो, सुनो पर कड़वा यानि सच्चाई न बोलो | शिक्षक अपने कर्म भूल, पैसे से मोह करते रहेंगे तो हम जैसे छात्र भी बनते रहेंगे | ना जाने कितने फर्जी बाड़े रोज समाचारों में पढने को मिल जाते हैं |स्कूल- काँलेज कुकुरमुत्तों की तरह हर गली-मुहल्लें में | डिग्रियां बिकती है बोलो खरीदोगें !! नकल भी खूब होती, ज्यादतर कालेजों में पैसा गुरु और सब चेला का बोलबाला | फिर उम्मीद कैसे कि कोई टॉपर सही मायने में टॉपर ही है | ऐसे टॉपरों के लिए फर्जी कॉलेजों की भी भरमार आजकल |

जो पकड़ा गया वो चोर जो छूट गया वो शाह !! हद है !! हम भारतीय हैं ही ऐसे एक अगुवा होता नहीं कि चल पड़ते पीछे-पीछे | पीछे की सच्चाई से किसी को कोई मतलब नहीं | कुर्सी पातें ही अपना इतिहास भूल जाते लोग, फिर वर्तमान को इतना दूषित कर देते कि इतिहास भी गर्वान्वित हो जाता | गलती उनकी भी कहाँ, जब नींव की ईंट ही लोना लगी हो| वैसे हम भारतीय अपनी गलती छुपा दुसरे की गल्तियाँ उजागर करने में भी माहिर हैं शायद इसी लिए हम अपनी असफलता का घड़ा अपने ही शिक्षकों पर फोड़ रहें| खुद की खोपड़ी में भूसा भरा था | मेहनत से भी जी चुराते रहें | हमारी तरह कई सोचेंगे तो ऐसा ही सोचेंगे —

मिट्टी घट थे
निखारा होता गर
आसमां छूते |

जी-जान से सब मेहनत करें तो शायद बात कुछ और हो| मेहनतऔर लगन से आदमी कहाँ से कहाँ पहुँच जाता हैं| नकल और दौलत को बैशाखी बना आगे बढ़ने से अच्छा हैं लंगड़ा कर चलना | परन्तु लंगड़े का मजाक उड़ाते सब, जिस दिन सब मजाक उड़ाना छोड़ उन्हें भी इज्जत देने लगेंगे कोई रूबी राय नहीं बनेगी | शिक्षा का शिखर उतना मायने नहीं रखता जितना अनुभव का| एक अनपढ़ भी अनुभवी हो सकता हैं और आप पढ़े-लिखों पर भारी भी | शिक्षा तो एक पड़ाव पर आ समाप्त हो जाएंगी पर अनुभव आपको जिन्दगी भर शिक्षित करता रहेंगा| …………….सविता मिश्रा

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|