मुक्तक
भारत के उपवन में जबतक मज़हब की फुलवारी है.
माता का यह रूप नहीं है शोषित अबला नारी है.
एक प्रश्न मैं फिर करता हूँ राजनीति के हेठों से.
सारा सबकुछ बाँट दिया है अब किसकी तैय्यारी है.
— मानस मिश्रा
भारत के उपवन में जबतक मज़हब की फुलवारी है.
माता का यह रूप नहीं है शोषित अबला नारी है.
एक प्रश्न मैं फिर करता हूँ राजनीति के हेठों से.
सारा सबकुछ बाँट दिया है अब किसकी तैय्यारी है.
— मानस मिश्रा