कविता :परिन्दों सी निकली
परिन्दों सी निकली
मुहब्बत भी तेरी !
बदला जब मौसम
बदल लिया फिर ठिकाना !!
मिलने की चाहत
हरदम रहती थी तुमको !
अब गुजर जाते हो गली से
कर मशरूफियत का बहाना !!
बेदर्दी इस दुनिया में
बेदर्द तुम भी निकले
यकीं करने से पहले
था ज़रुरी आजमाना !!
समझा तुझको मंज़िल
की थी इबादत !
तमन्ना अब तो मेरी
बन गयी है अफ़साना !!
इक उम्र बितायी हमने
गलतफ़हमी में इसके !
के आता है तुमको
भी इश्क निभाना !!
अंजु गुप्ता