”दोहा”
सावन सावन मत कहों, आवत नहि वन मोर
भरि गागरिया ले खड़ी, कहाँ गयो चित चोर॥-1
उमस रही है बादरी, ललक बढ़ी है ज़ोर
आ रे साजन झूलना, लचक रही है डोर॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
सावन सावन मत कहों, आवत नहि वन मोर
भरि गागरिया ले खड़ी, कहाँ गयो चित चोर॥-1
उमस रही है बादरी, ललक बढ़ी है ज़ोर
आ रे साजन झूलना, लचक रही है डोर॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी
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उम्दा
सादर धन्यवाद आदरणीया हार्दिक आभार