मइया
मइया!
मुझे भी दो, अपने आँचल की छईयाँ
मैं भी जीवन जीना चाहूँ
जैसे जीते हैं सब के भइया।
मइया!
जन्म दे दो माँ मुझे भी
काम करुँगी तेरा मै सभी
भेदभाव से चाहे पालना मुझको
भोग्य पदार्थ भी रहे अकिंचन
पर शिक्षा समुचित देना
फिर भी तुझे मैं कहुँगी मइया।
मइया!
तू बन जा मेरी मइया
धवल करूँगी तेरा अँगला,
चाहे दे या न दे कँगना
बस तेरा स्नेह मिले तो,
सह लूँगी हर जुमला
पय से निकालूंगी गोरस
और खिलाऊँगी गइया।
मइया!
विज्ञान की विपुल शक्ति ना करो उपइया,
जीवन लेना,
देने से अच्छा तो नहीं
समस्टि मे
कलुषित आनन पर
कश्चित् अवगुंठन
शाश्वत तो नहीं
दुरपथगामी साधन ये
सरस प्रेम तरणी न बहइया।
मइया!
तेरे हाथ मेरी जीवन नइया
तू ही तो सोंच
किसी की तू है दुहिता
स्व अजन्मी दुहिता को
अपनें सो जान
बाबा या अम्मा
पापा भी हो चहे पापाचार में
परिवार के संग
तो माँ
पकड तू क्रांति की बहियाँ
मइया।।