आजाद है हम !
कल की गुलामी अंग्रेजों की थी,
पर आज तो हम आजाद हैं ना?
डर,आरजकता,लोभ,स्वार्थ अब,
हर कोने में आबाद है|
बर्बर,डच,मुग़ल,तुगलक,
तो एक के बाद एक थे आए|
अब तो आलम ये है प्यारे,
सारी नीचता एकजुट है छाये|
कल हीरे लूटे,मंदिर लूटे,
अस्मत की चादर छीनते आए,
आज इनमे से आज कौन बचा
विश्वास की लूट चार चाँद लगाए|
गुलामी की मोटी जंजीरें,
पहले से भी कसी हुई,
चेहरे और तरीके बदले,
नीयत वहीँ पर फसी हुई |
मत जगना,तुम हो ‘आम नागरिक’
कोने मे दुबके सोये रहना,
किसी-किसी मौको पे कभी,
अंगडाई लेकर फिर सो जाना|
हम गुलाम कल थे आज भी है
बस मौके और हालात हैं बदले|
फितरत तो अब भी रक्त-चूषक
शोषक के अंदाज़ हैं बदले|
स्वाति वल्लभा राज
मौजूदा हालात पर सटीक अभिव्यक्ति है आपकी..
पहले बाहरवालों से डर था अब घरवालों से ही डर है…
पर हैं कुछ अच्छे लोग जिसपर दुनिया कायम है ..