कविता

भगवान

देखा है मैंने
आस्था और स्नेह वालों को
लाइन में खड़े
जो हैं उस रब के सहारे पूरा जीवन
उनको मैंने तेरे द्वार पर खड़े अपनी सफाई में इंसान कुछ भी कह ले
मगर पैसे वाला ही दर्शन करता है पहले तेरे संत, महात्मा, मुनि तो कहीं चिरनिंद्रा में सो गये हैं
उनकी अनुपस्थिति में, चुनिंदा धूर्त भी धर्म के ठेकेदार हो गये हैं
देख
पाप और स्वार्थ का कोहरा -सा छा गया है
भोले तू लोगों के दिलों और घर में था
देख तू आज गंगा तट पर आ गया है
लोगों की उम्मीद और श्रद्धा एक पहेली हो गई है
देख महादेव तेरी गंगा भी मैली हो गई है
हम सब एक हैं
एक ही रब है
जब हर कोई ये गायेगा
सुनायेगा
दोहरायेगा
वो भगवान हमारे पास खुद-ब-खुद
चला आयेगा

कवि -परवीन माटी

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प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733