कर्म प्रकाशा
है हर तरफ़ प्रपंच और
झूठ का हीं मंच पर
अडिग रहो,
अथक बढ़ो ,
रुको नहीं संदेह में ।
घोर तिमिर जो सामने,
आत्म बल कुलबुलाने
प्रचंड रुप
तुम धरो,
धराशायी अन्धकार हो ।
संशय में भविष्य जो
लड़खड़ाये हर स्वपन तो,
कर्म हीं प्रधान हो
सुदृढ़ विश्वास हो ,
सुनिश्चित जीत हो ।
स्वाति वल्लभा राज
सुन्दर भाव !
सुन्दर भाव !