कविता

ख्वाबों के आँगन में

शब्द मोहब्बत, इश्क, प्रेम, प्यार, लव के
एक पंछी को माध्यम बनाकर
गीत है जो गर में गुनगुनाऊ।।।।।

ख्वाबों के आँगन में

ख्वाबों के आँगन में
मैंने कुछ दाने डाले
मोहब्बत के
तूँ दाना चूग के
उड ही लई
जो चिड़िया बन के आई थी
आँखें मूंदे अब बैठा हूँ
की तूँ फिर से चूगने आयेगी
सूखे पडे इन नालों में
तूँ बारिश बनके छायेगी
होंठों की ठिठुरन
दिल की तडप
साथी की आस लगाये है
पर्बत, घाटी
रेगिस्तान हूए
फिर भी ये कबीरा गाये है
ख्वाबों के आँगन में
मैंने कुछ दाने डाले
मोहब्बत के
तूँ दाना चूग के
उड ही लई
जो चिड़िया बन के आई थी
राही की इक बात कहूँ
ये चलते चलते टूट गया
टूटे में अब भी जां अटकी
बेशक जमाना रूठ गया
इसकी धड़कन में तूँ है बसा
इसके टुकडों में तूँ है रवाँ
जो तुने छुआ आइने से
तो ये हो गया जवां
जब भी मिले तुम गैरों में
तुम को यही समझाये है
तेरे दर पर दम निकला
फिर भी ये कबीरा गाये है
ख्वाबों के आँगन
में मैंने कुछ दाने डाले
मोहब्बत के
तूँ दाना चूग के
उड ही लई
जो चिड़िया बन के आई थी
वादा किया था
तुने तो
संग जीने का
संग मरने का
डूबे समंदर में तो
वादा था पार उतरने का
तुफां में अकेला छोड़ दिया
मेरी गलियों से मुह मोड़ लिया
इस महफिल की तुम साज सुनो
इस भटके की आवाज़ सुनो
सर झुकाये बैठा है जो
उस आशिक की फरियाद सुनो
तूँ बैठी महलों में
अब भी यूहीं मुस्कुराये है
ये बैठा कतार में फकीर
देख वही गुनगुनाये है
बंद होंठों से नाम तेरा
फिर भी ये कबीरा गाये है
ख्वाबों के आँगन
में मैंने कुछ दाने डाले
मोहब्बत के
तूँ दाना चूग के
उड ही लई
जो चिड़िया बन के आई थी

गीत -परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733