महरी वन्दना
हे महरी देवी नमस्कार!
तुमने घरों से नहीं किन्तु झाड़ू-बर्तन से किया प्यार।
हे महरी देवी नमस्कार!!
हे देवी नित्य सवेरे ही घंटी दे हमें जगाती हो।
दरवाजे पर दर्शन देकर मोहक मुस्कान खिलाती हो।।
जिस दिन न तुम्हारे दर्शन हों, बीबीजी को आये बुखार।
हे महरी देवी नमस्कार!!
जब तक तुम नहीं आती हो, बर्तन का ढेर डराता है।
रसोई में बिखरा कूड़ा चूहों को भी ललचाता है।।
तुम्हारे हाथों को छूते ही गायब हो कूड़े का अंबार।
हे महरी देवी नमस्कार!!
छुट्टी का तुम नाम न लो, दिल की धड़कन बढ़ जाती है।
जुकाम तुम्हें होता है तो, सबको जूड़ी चढ़ जाती है।।
तुम स्वस्थ हमेशा बनी रहो, दया करे परवरदिगार।
हे महरी देवी नमस्कार!!
— विजय कुमार सिंघल
आश्विन शु. ४, सं. २०७३ वि. (5 अक्तूबर 2016)