गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल ३

अब नज़र में हम जहाँ के आ गए
यूँ प्यार का नशा ही बिखरा गए।

चैन से गुल ओ बुलबुल जी रहे थे
सितमगर क्यों कहर बरपा गए।

चाहतें देखना छुपकर किसी की
किसी की हरकतों से शर्मा गए ।

जुदाई की घड़ी मिटने नहीँ देते
लोग ऐसे जाने कहाँ से आ गए।

शजर कुम्हला गया है धूप से
देखो झूमकर हैं सावन आ गए ।

हो न पाईं मुलाक़ातें रूबरू तो
शब्द बनकर वो रूह में छा गए ।

जुदा है अब है कहाँ अहसास ये
सांस बन एक दूसरे में समा गए।

जानिब ढूँढ़ती है एक दीपक यहाँ
और वो लाखों दीये राह में जला गए।

— जानिब

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर